गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

हरफ़नमौला राजकुमार सोनी-बिगुल- “चिट्ठाकार चर्चा”(ललित शर्मा)

जब से कलम का अविष्कार हुआ है. तब से लगातार कलम निरंतर लिखते आ रही है.ऊंच नीच, जाति धर्म का भेदभाव किये बिना. इस कलम के द्वारा नित नयी रचनाएँ सामने आती रही हैं सदियों से. ऋग्वेद से लेकर आज के अख़बारों तक. अखबारों में कभी हमने भी कलम चलायी, कलम में बहुत ताकत है.जब अपनी टेबल पर हम काम करते थे तो यही शहर के बड़े-छोटे नेता आते और एक विज्ञाप्ति देकर फर्शी सलाम ठोकते थे कि आगामी संस्करण में उनकी विज्ञप्ति को जगह मिल जाये. आज वे बड़े-बड़े सरकारी पदों पर आसीन हैं. हमने कलम नहीं छोड़ी इसलिए वैसी ही किसी टेबल पर बैठ कर की बोर्ड पर उँगलियाँ चला रहे हैं.शायद जीवन पर्यंत यही चलता रहेगा. आज की चिट्ठाकार चर्चा में हम आपको ऐसे ही कलम के धनी लेखक पत्रकार से मिलवा रहे हैं. चलिए मै ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की चिट्ठाकार चर्चा पर............
चिट्ठाकार चर्चा में शामिल चिट्ठाकार है श्री राजकुमार सोनी जी इनका प्रभावशाली लेखन आकर्षित करता है. भाषा पर गहरी पकड़ है.विद्रूपों पर अपनी लेखनी को शमशीर बना कर कड़ा प्रहार करते हैं.अमिताभ बच्चन पर लिखी गई इनकी एक पोस्ट

साला..कुछ भी करेगा,उन्हें महानालायक कहने वाले पर कस कर प्रहार करती है. इनके बिगुल की आवाज दूर तक जा रही है. इस लिए अब गलत लिखने वालों को सावधान हो जाना चाहिए राजकुमार सोनी जी का बिगुल बज चूका है. इनकी प्रथम पोस्ट मंगलवार ५ जनवरी को प्रकाशित हुयी है............

..इनके विषय में जाने………….

Rajkumar Soni

मेरे बारे में

जिस दिन दुनिया में आंखे खोली वह तारीख थी- 19 नवंबर। भिलाई इस्पात संयंत्र के कोकवन में काम करने वाले मजदूर पिता ने मुझे बेफिक्री से सोते हुए देखकर कहा-हमारी झोपड़ी में तो लाट साहब आ गया है। धीरे-धीरे नाम पड़ गया- राजकुमार। स्कूल से भागकर फिल्म देखने के शौक के चलते जैसे-तैसे शिक्षा पूरी हुई। गांधी डिवीजन लेकर बीकाम पास। कुछ साल लेखकों के मठों और गिरोह से जुड़कर कविताएं लिखी, लेकिन जल्द ही पता चल गया कि कविताओं से पेट नहीं भरा जा सकता। कोरस, मोर्चा, घेरा, गुरिल्ला, देश जैसे नाटक लिखे। तमाम तरह की नौटंकियों से गुजरने के बाद फिलहाल कुछ सालों से सक्रिय पत्रकारिता में। इन दिनों दैनिक हरिभूमि रायपुर (छत्तीसगढ़) भारत में मुख्य नगर संवाददाता। मन में एक आदिम इच्छा अब भी कायम- यदि कभी वक्त ने साथ दिया तो सुपरहिट मसाला फिल्म जरुर बनाऊंगा। मोबाइल नंबर- 098271 93988

पहली पोस्ट 5 जनवरी 2010







गुड्डी से किरण तक

Tuesday, January 5, 2010

राजकुमार सोनी
जी हां.. यह सच है। बचपन में सभी किरणमयी नायक को गुड्डी कहकर ही बुलाते थे। गुड्डी के पिता दिलीप वर्मा सरकारी मुलाजिम थे। सरकार की नौकरी करने के दौरान उनकी इधर से उधर बदली हो जाया करती थी। बदली के दौरान ही जब वे ग्वालियर पहुंचे तो एक मार्च 1966 को किरण ने जन्म लिया। किरण को देखते ही सबसे पहले उनकी मां शकुन्तला देवी ने कहा था- मेरे घर गुड़िया आ गई। उन दिनों बाजार में वैसे खिलौने नहीं थे जैसे आज मौजूद हैं सो गुड़िया को भी वही लकड़ी वाला पुराना घोड़ा मिला जो बगैर बैठे हिलता-डुलता नहीं था। घोड़े के कान उमेंठते-उमेंठते जब गुड्डी लुका-छुपी और आमलेट-चाकलेट खेलने के काबिल हुई तो मां ने ही उसे बताया कि वह बड़ी होती जा रही है। उसके लिए अब ज्यादा आइना देखना ठीक नहीं है। ये करना है.. ये नहीं करना है। लड़कियां खिलखिलाकर नहीं हंस सकती जैसी सख्त हिदायतों के बीच गुड्डी ने परम्परागत रुप से यह तय कर लिया कि वह कभी भी अपने मां और पिता का दिल नहीं दुखाएगी। गुड्डी ने फिर वही किया जो उसके माता-पिता चाहते थे। गुड्डी ने शिक्षा को ही अपना लक्ष्य बनाया। बीएससी, एलएलबी, एलएलएम करने के बाद भी किरणमयी अब तक पढ़ ही रही हैं।

अद्यतन पोस्ट


नक्सलियों के गढ़ में लालाजी

Wednesday, February 3, 2010

राजकुमार सोनी
यदि छत्तीसगढ़ के बस्तर में पर्यटक नक्सली हिंसा की वजह से कम जाते हैं तो यह भी एक सत्य है कि नक्सलगढ़ में पर्यटकों का जाना लाला जगदलपुरी की वजह से भी होता हैं। यूं तो बस्तर में जानने -समझने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन देश और दुनिया के शोधार्थियों की रुचि केवल तीन बिन्दुओं पर टिकी रहती है। पहले क्रम में नक्सली, दूसरे क्रम में मानव सभ्यता के जिंदा इतिहास आदिवासी है तो तीसरे क्रम में लोकजनजीवन में रचे-बसे लेखक, कवि लाला जगदलपुरी है। बस्तर का शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां कोई आदिवासी बच्चा अपनी मां से लालाजी के किस्से नहीं सुनता हो। स्याह रात में जब किसी पहाड़ से दिल पर उतर जाने वाली आवाज सुनाई दे और अचानक यह लगने लगे कि आसपास शहद टपकने की घटना होने लगी है तब समझिए कि कोई मां अपने जिद्दी लाड़ले को सुलाने के लिए लालाजी का ही किस्सा गुनगुना रही है। गोली और बारूद की गंध के बीच लालाजी की एक कथा उदास मां के चेहरे पर मुस्कुराहट ले आती है, और बच्चा तो उस दुनिया में पहुंच ही जाता है जहां टूथपेस्टों में घुसकर बाजार नहीं पहुंचता। लालाजी ने खूब लिखा है। इतना खूब कि साहित्य के गुंडों-मवालियों ने उनकी हर श्रेष्ठ रचना पर डकैती जरूर डाली है। लालाजी की रचनाओं के अपहरणकर्ता उनके सृजन को अपना बताकर घूमते रहे और लालाजी यही सोचकर खामोश रहे कि रचना अच्छी लगी होगी तभी किसी ने सेंधमारी की है अन्यथा कोई क्यों चुराता?
अब चलते है, ललित शर्मा का राम-राम

13 टिप्पणियाँ:

समयचक्र ने कहा…

बहुत ही सरगार्वित चर्चा ... बधाई

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

Prasanntaa hui Soni jee ke parichay se, aabhaar !

Unknown ने कहा…

राजकुमार सोनी जी का लेखन बहुत ही स्तरीय है! वे अभी ब्लोगिंग में नये हैं इसलिये शायद बहुत लोग उन्हें नहीं जानते होंगे। आपने उनका परिचय देकर एक सराहनीय कार्य किया है!

कडुवासच ने कहा…

...प्रसंशनीय प्रस्तुति !!!!

Himanshu Pandey ने कहा…

राजकुमार जी के बिगुल का नियमित पाठक हूँ । अद्यतन पोस्ट पढ़कर आ रहा हूँ अभी । अच्छा लग रहा है उसी पोस्ट की चर्चा देखकर, और चिट्ठाकार का उल्लेख भी देखकर यहाँ । चर्चा का आभार ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

राजकुमार सोनी जी से मिल कर अच्छा लगा!
अब इनके ब्लाग पर भ्रमण होता रहेगा!

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

बधाई ललित जी एक अच्छे लेखक से मिल कर बहुत अच्छा लगा...आज कल बहुत क़म ही है जो सार्थक लेखनी कर रहें हैं..

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा चर्चा रही , सोनी जी से मिलवांने के लिए आभार ।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत आभार श्री राजकुमार सोनी जी से मिलवाने का. हम तो इनके रायपुर की तवायफों वाला आलेख पढ़कर
इनकी लेखनी के कायल हो गये.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

ब्लॉगजगत के ज्यादातर पाठक सोनी जी की लेखनी से सही मायनों में अभी परिचित ही नहीं हुए हैं।

मुझे याद है सन 2002 में अपना जनसत्ता(raipur) अखबार का कार्यकाल जब सोनी जी हमसे सीनियर रिपोर्टर हुआ करते थे। तब ऐसा कोई दिन नहीं जाता था जब
एक ही अंक में सोनी जी की नाम के साथ दो दो एक्स्क्लूज़िव स्टोरी न जाती हो।

वहीं सोनी जी कला व संस्कृति के मुद्दे पर जमकर लेखन करते हैं।

सोनी जी और अपना एक अलग ही आत्मीय रिश्ता है।

शुभकामनाएं उन्हें।

बेनामी ने कहा…

24 जनवरी को रायपुर में सोनी जी से अपनी पहली मुलाकात के बाद कल हुई फोन पर लम्बी बातचीत से उन्हें बेहद सुलझा इंसान पाया।
आपकी इस पोस्ट व टिप्पणियों से मेरी सोच को बल मिला है।

बी एस पाबला

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

राजकुमार जी का परिचय पाकर खुशी हुई। क्‍या सारा रायपुर ही ब्‍लाग लिखता है? कितने ब्‍लागर हैं रायपुर से?

बेनामी ने कहा…

@ Dr. Smt. ajit gupta

रायपुर और उसके आसपास के लगभग 80 हिन्दी ब्लॉगरों की जानकारी तो है हमारे पास। एकाध सप्ताह में लगभग 20 और जुड़ने वाले हैं।

बी एस पाबला