गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"---चिट्ठाकार चर्चा में--(ललित शर्मा)

कल ममता का रेल बजट आया और सारी समस्याओं का ठीकरा लालू के सर पर फोड़ा, मैनेजमेंट गुरु हो चुके लालू के मेनेजमेंट का सारा भंडा फोड़ कर रख दिया. जो हमने सोचा समझा था वही हुआ. आंकड़ों के खेल से लालू ने सबको चकित कर दिया था. लेकिन अब कलाई खुलने पर पता चला है कि झोल कहाँ पर था? ममता ने सब कुछ सामने ला दिया. नहीं लाती तो ये भांडा उनके सर पर फूटता. सबको अपना गला बचाने की पड़ी है और रेल बजट कुछ खास नहीं रहा. बंगाल और बिहार को ही प्रतिवर्षानुसार नवाजा गया. अन्य दुसरे प्रदेशों की अनदेखी की गई. खास कर छत्तीसगढ़ की. यहाँ का बिलासपुर जों भारत में रेलवे को सबसे ज्यादा मुनाफा देता है. रेलवे की आया का १२% बिलासपुर से ही मिलता है. लेकिन सुविधाओं के नाम कुछ भी नहीं. यहाँ के लोग अब अपनी अनदेखी बर्दास्त नहीं कर पा रहे हैं और आन्दोलन के मूड में हैं. अब मै ललित शर्मा ले चलता हूँ आपको आज की चिट्ठाकार चर्चा पर..............
आज की चिट्ठाकार चर्चा में शामिल हैं डॉ.रूपचंद शास्त्री. जिन्हें ब्लाग जगत के लगभग सभी चिट्ठाकार जानते हैं. आप स्वयं चिटठा-चर्चाकार हैं. बहुत उर्जा हैं इनमे. नित्य बिला नागा चिटठा चर्चा करते है. कभी-कभी तो दिन में दो चर्चाएँ भी हो जाती हैं. एक अकेले मिशनरी जैसे हिंदी की सेवा में लगे रहते है  इनके कई चिट्ठे हैं जिनमे उच्चारण प्रमुख है.अन्य चिट्ठे इस प्रकार है--मयंक---शास्त्री "मयंक"---शब्दों का दंगल--चर्चा मंच--नन्हें सुमन--अमर भारती--अन्य चिट्ठो पर भी इनकी सेवाएं उपलब्ध है जैसे..चर्चा हिन्दी चिट्ठों की !!!-----नन्हा मन----पल्लवी--पिताजी--हिन्दी साहित्य मंच--तेताला--नुक्कड़---इत्यादि.................

अपने ब्लाग प्रोफाइल पर लिखते है..........

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक

मेरे बारे में

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। मेरे बारे में अधिक जानकारी निम्न लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है।
उच्चारण की पहली पोस्ट 

बुधवार, २१ जनवरी २००९



सुख का सूरज उगे गगन में, दु:ख का बादल छँट जाए।
हर्ष हिलोरें ले जीवन में, मन की कुंठा मिट जाए।
चरैवेति के मूल मंत्र को अपनाओ निज जीवन में -
झंझावातों के काँटे पगडंडी पर से हट जाएँ।

अद्यतन  पोस्ट
होली आई, होली आई,
गुझिया मठरी बर्फी लाई,
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670870_f520  mathri_salted_crackers  images-products-SW07.jpg
मीठे-मीठे शक्करपारे, 
साजे-धजे पापड़ हैं सारे
 
roasted-papad 
चिप्स कुरकुरे और करारे,
दहीबड़े हैं प्यारे-प्यारे,
 
chips
curdvada 
तन-मन में मस्ती उभरी है,
पिस्ता बर्फी हरी-भरी है,
 
Pista-Barfiieh10_large
पीले, हरे गुलाल लाल हैं,
रंगों से सज गये थाल हैं.
 
holi (3)
कितने सुन्दर, कितने चंचल,
 
हाथों में होली की हलचल,

 celebrating-holi 
फागुन सबके मन भाया है! 

होली का मौसम आया है!!

अब देता हूँ चर्चा को विराम-आपको ललित शर्मा का राम-राम
 
 

बुधवार, 24 फ़रवरी 2010

ओ छो्रे! क्या कहने तेरे-"फ़कीरा" चिट्ठाकार चर्चा मे (ललित शर्मा)

रेल चली भाई रेल चली--छुक-छुक रेल चली-देश मे विद्यार्थियों का सरोकार रेल से पड़ता है गांव से शहर पढने जाते हैं, बडे शहरों मे लोकल ट्रेन चलती है जिसमे सभी तरह के लोग सवारी करते है. दूर की यात्रा तो सबको करनी पड़ती है........लेकिन ट्रेन में सुविधाओं के नाम पर लुट खसोट मची रहती है....आज रेल मंत्री ममता बनर्जी बजट लेकर आ रही हैं...देखना है यात्री सुविधाओं के नाम पर वो क्या लेकर आती हैं अपने पिटारे में...किसके लिए कितनी सुविधा और किस प्रदेश को नई गाड़ियों की सेवा के उपहार से नवाजती हैं.........अब मै ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज के चिट्ठाकार चर्चा पर................

चर्चा में शामिल हमारे आज के चिट्ठाकार हैं......यशवंत मेहता "फकीरा" .....इनकी प्रोफाइल पर तीन चिट्ठे दिख रहे हैं...फ़कीरा का कोना, युग क्रांति तथा YOUNG INDIAN SAY .इन चिट्ठों पर ये लिखते हैं. गीत गजल भी कहते हैं.लेकिन इनकी रचनाओं के शीर्षक कुछ अलग ही होते है..मसलन "बेशरम लाल भगंदर वाले बन्दर" इनके ब्लाग युग क्रांति पहलों पोस्ट बुधवार, ६ जनवरी २०१० की दिखाई पड़ती है. सामाजिक सरोकार के मुद्दों को अपने मंच से उठाते हैं. इनका खिलंदड़ा पन मन को भाता है. इनकी खाते में एक अर्ध टांकी रोहण भी उपलब्धियों के रूप में चढ़ा हुआ है. और भी बहुत सारी पोस्ट इन्होने लिखी है. हम कामना करते हैं कि निरंतर लेखन से ब्लाग जगत को समृद्ध करते रहे.........
अपनी प्रोफाइल पर लिखते हैं........................

यशवन्त मेहता "फ़कीरा"

मेरे बारे में

दिल वालो के शहर दिल्ली का रहने वाला हूँ. दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त करी हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से बहुत प्रेम हैं. हरियाली से विशेष लगाव हैं. बारिश में जब हरा सोना खिलता हैं तो मन आनंदित हो जाता हैं. अनुभवी जनों और बुद्धिजीवियो का साथ अच्छा लगता हैं. चाय पीना ,बच्चन की मधुशाला को बार-बार पढना भी, बच्चों से बातें करना और उनके संग बच्चा बन जाना भाता हैं .गरीबों और मासूमों पर जब अत्याचार होता हैं तो बुरा लगता हैं.
युग क्रांति से इनकी पहली पोस्ट 

बुधवार, ६ जनवरी २०१०


मेरे हिंदी प्रेम की कहानी

यह पल मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं जब मैं हिंदी ब्लॉग जगत में कदम रख रहा हूँहिंदी हमेशा से दिल के करीब रही हैं परन्तु यह मेरा दुर्भाग्य हैं कि दसवी कक्षा के बाद हिंदी पढने का मौका ही नहीं मिला स्नातक में गणित का साथ पकड़ लिया

आज भी मुझे महाविद्यालय का प्रथम दिन याद हैं जब किसी ने मुझसे अपने विषय को हिंदी में बोलने को कहामैंने तत्काल ही उत्तर दिया --- स्नातक(वरिष्ट) गणित प्रथम वर्ष, वो पल ऐसा था जिसमे मुझे अपने हिंदी पढने पर गर्व हुआ । उसी पल मन में ठान ली कि स्नाकोतर करूँगा तो सिर्फ हिंदी में अन्यथा नहीं, परन्तु यह संकल्प तब समय के साथ दिल के किसी कोने में गुम हो गया और स्नाकोतर में भी गणित के दुसरे रूप का साथ पकड़ लिया

बचपन में जनसत्ता के दर्शन होते थे कोमल मन जनसत्ता को कहाँ से समझ पाता सो माताजी ने हमारे लिए चम्पक लगवा दी वो भी अंग्रेजी मेंचम्पक को पढना और भार्गव के हिंदी-अंग्रेजी कोश के पन्ने पलटना बहुत अच्छा लगा क्यूंकि अंग्रेजी ज्ञान में बढ़ोतरी हो रही थी और नित नयी कहानिया भी पढने को मिल रही थीहमारी अंग्रेजी तो अच्छी हो ही रही थी और हिंदी का एक नया संसार भी बन रहा था मन के भीतर अपने आप रचित हो रहा था

युग क्रांति से अद्यतन पोस्ट...

मंगलवार, २३ फरवरी २०१०


ताऊ उत्पाद उत्पात ख़तम कैप्सूल

ताऊ जी अपने उत्पाद के सफल प्रयोग कर रहे हैं और प्रयोगशाला बन गए हैं समीर लाल. मार्केटिंग करते हुए ताऊ जी असली बातें तो छुपा गए. बोले तो "ताऊ जी उत्पादों  के उत्पात". हमने तो पकड़ लिए "ताऊ जी उत्पादों  के उत्पात" और उसका इलाज भी ले आये हैं. अब आप बिना किसी भय के ताऊ उत्पादों का जम कर इस्तेमाल करें और ताऊ उत्पादों के उत्पात से जब परेशान हो जाये तो  इलाज के लिए हमारा उत्पाद इस्तेमाल करें.हम पेश करते हैं अपने ताऊ उत्पाद उत्पात ख़तम कैप्सूल की सफलता की एक झलक.......
 जैसा कि आप जानते हैं कि ताऊ ने अपने उत्पादों का प्रयोग समीर लाल जी पर किया और उनका प्रभाव भी समीर लाल जी पर दिखा. वो गोरे हो गए और पतले भी हो गए. 

Thursday, October 29


YOUNG INDIAN SAY--- An Attempt

Young Indian Say is an attempt. It is an attempt to change. It is an attempt to bring revolution. It is an attempt to present thoughts of a common Indian youth. 

Wednesday, January 6


Jahapanah Tussi Great ho ---- Ye Post Kabool ho

 3I was anticipated as most awaited film of 2009 by film critics and media. It has supported the theory by its record-breaking collections in just 10 days. Chetan Bhagat, Aamir Khan, Raju Hirani and Vidhu Vinod Chopra --- all of these persons are legend in their own league. Chetan accused VVC for lifting story from his novel “Five point someone” and not giving appropriate credit for the story. VVC shouted and then apologized for his nonsensical behavior with media. Aamir Khan also gave interviews defining Chetan’s protest as a cheap attempt to get publicity.

3 Idiots and FPS have a common base which reveals the drawbacks of our education system. We always prefer a number game. “Viruses” sitting around us clap only when report card shows 90-90. They cannot appreciate when a child create a painting of his dreams. They cannot throw a party when a child wants to click photographs of butterflies.
फकीरा का कोना से.......... 

सोमवार, २२ फरवरी २०१०


तेरे हुस्न ने मोहब्बत को मेरे दिल का पता दिया -------- (फ़कीरा)

तेरे हुस्न ने मोहब्बत को मेरे दिल का पता दिया 
मेरी उलझी जिन्दगी को तेरी उलफ़त ने सुलझा दिया

तेरी मोहब्बत के आफ़ताब ने हर सुबह को खिला दिया 
मेरी दीवानगी के माहताब ने हर रात को शायराना बना दिया 

रुख से नक़ाब की बेवफ़ाई ने मुझे तेरा दीदार करा दिया
ज़हे-नसीब कि कुदरत ने  फिर इक कोहिनूर बना दिया

तेरी अदा ने शोले को शबनम बना दिया 
इश्क में इमां-ओ-दीं गया , तूने "फ़कीरा" बना दिया

अब देते हैं चर्चा को विराम............आप सभी को ललित शर्मा का राम-राम

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

1100 पोस्ट 364 दिन-राजकु्मार ग्वालानी-"चिट्ठाकार चर्चा" में (ललित शर्मा)

संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है और राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में कहा है कि मंहगाई रोकना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है...अब मंहगाई काम करने को सरकार ने अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल कर लिया.....पर अभी तक सरकार क्या कर रही थी? मंहगाई रोकने के लिए.......पवार जी तो ज्योतिषियों, नजूमियों पर अपनी जवाबदारी टाल गए थे.......इधर हमारे ज्योतिषियों ने मामला फिर परवर जी सर पर पटक दिया कि हम कोई कृषि मंत्री या खाद्य मंत्री नहीं हैं जो बता सकें कि मंहगाई कब कम होगी....मुई मंहगाई ना हुयी.......फुटबाल हो गयी है........लातें चल रही हैं है लेकिन गोल नहीं हो रहा है.....बन्दर वाली खाज हो गयी है........जब जरुरत पड़े खुजा कर जख्म हरे कर दो............अब मैं ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की चिट्ठाकार चर्चा पर..................
हमारी आज कि चर्चा में शामिल यशस्वी चिट्ठाकार हैं राजकुमार ग्वालानी जी...ब्लाग जगत का एक जाना माना बारूदी सुरंग ब्लास्ट करने वाला नामी व्यक्तित्व.......पिछले दिनों....इनके ब्लाग की एक हजारवीं पोस्ट थी और लाख चाहने पर भी मैं इन पर नहीं लिख पाया था.....आज बहुत ही ख़ुशी की बात है कि इनके ब्लाग राजतन्त्र का जन्मदिन है.........और मैं बधाई स्वरूप यह पोस्ट लगा रहा हूँ.......आज इनके ब्लाग राजतन्त्र और खेलगढ़ को मिला कर ११००वी पोस्ट हो गयी है........ राजतंत्र पर इनकी पहली पोस्ट २५ फरवरी २००९ की दिख रही है....
प्रोफाइल पर कुछ इस तरह इनका परिचय है.........

राजकुमार ग्वालानी

मेरे बारे में

पत्रकारिता सॆ करीब दो दशक‌ से जुड़ा हूं। वैसे मैंने लंबे समय तक‌ देश की क‌ई पत्र-पत्रिकाऒ में हर विषय में लेख लिखे हैं। मैंने दो बार उत्तर भारत की सायक‌ल यात्रा भी की है। रायपुर कॆ प्रतिष्ठित समाचार पत्र देशबन्धु में 15 साल तक काम किया है। वर्तमान में मैं रायपुर कॆ सबसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में एक पत्रकार कॆ रूप में काम क‌र रहा हूं।

राजतन्त्र पर पहली पोस्ट........२५ फरवरी २००९ 

Wednesday, February 25, 2009


कुम्भ की मेजबानी में भी छत्तीसगढ़ नंबर वन

छत्तीसगढ़ का नाम आज राजिम कुम्भ की मेजबानी में नंबर वन पर आ गया है। छत्तीसगढ़ देश का ऐसा एक मात्र राज्य है जहां पर हर साल कुम्भ का आयोजन होता है। अब यह बात अलग है कि राजिम कुम्भ को कुम्भ कहने से कुछ लोगों को आपत्ति होती है, लेकिन देश के महान साधु-संतों ने जरूर इसको देश के पांचवें कुम्भ का नाम दे दिया है। वैसे राजिम को कुम्भ कहने से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अगर देश में एक और कुम्भ प्रारंभ हुआ है और वह भी एक ऐसा कुम्भ जहां पर हर साल देश भर के साधु-संतों का जमावड़ा लगता है तो इसमें बुरा क्या है। वैसे राजिम को कुम्भ का दर्जा दिलाने में सबसे बड़ा हाथ प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के साथ पयर्टन- संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का है। आज देश का ऐसा कोई साधु-संत नहीं होगा जो इन दोनों को नहीं जानता होगा। राजिम की नगरी पुराने जमाने से साधु-संतों की नगर रही है। यहां पर लोमष ऋषि का आश्रम है। इसी आश्रम में आकर देश के नागा साधुओं को जो सकुन और चैन मिलता है, वैसा उनको कहीं नहीं मिलता है। सारे साधु-संत एक स्वर में इस बात को मानते हैं कि छत्तीसगढ़ सरकार ने जैसा काम राजिम कुम्भ के लिए किया है वैसा देश में किसी और राज्य की सरकार ने नहीं किया है। ऐसे में क्यों न सरकार की तारीफ हो।
राजतन्त्र कि अद्यतन पोस्ट.........

Tuesday, February 23, 2010


राजतंत्र के जन्म दिन के साथ हो गई 1100 पोस्ट

चलिए हमने अपने वादे के मुताबिक राजतंत्र के जन्म दिन पर आज अपनी पोस्ट का आंकड़ा 1100 तक पहुंचा ही दिया। हमें मालूम है कि इसके पहले संभवत: एक और ब्लाग अदालत ने एक साल में 1100 पोस्ट का आंकड़ा प्राप्त किया था। लेकिन हमने 1100 का आंकड़ा एक ब्लाग में नहीं बल्कि अपने दो ब्लाग में प्राप्त किया है।ब्लाग जगत में हमने पिछले साल 3 फरवरी को खेलगढ़ और राजतंत्र के माध्यम से कदम रखा था। खेलगढ़ में इसी दिन से लिखने की शरुआत की थी लेकिन राजतंत्र में हमने पहली पोस्ट आज के दिन यानी 23 फरवरी को लिखी थी। आज हमारे इस दूसरे ब्लाग के जन्मदिन के साथ ही हमारी 1100 पोस्ट पूरी हो गई है। आशा है हमें ब्लाग बिरादरी के साथ पाठकों का प्यार इसी तरह से मिलते रहेंगे।
खेलगढ़ की अद्यतन पोस्ट......... 

भोपाल, दानापुर क्वार्टर फाइनल में



अखिल भारतीय स्वर्ण कप नेहरू हॉकी में साई भोपाल और बीआरसी दानापुर की टीमें अपने-अपने मैच जीतकर क्वार्टर फाइनल में पहुंच गई हैं। भोपाल ने तमिलनाडु पुलिस चेन्नई को १-० और बीआरसी दानापुर ने ङाारखंड पुलिस को २-० से मात दी। एक अन्य मैच में बिहार पुलिस पटना ने जिंदल स्टील रायगढ़ को २-१ से मात दी। स्पर्धा में कल एक प्रीक्वार्टर फाइनल मैच के साथ चारों क्वार्टर फाइनल मैच खेले जाएंगे।
एथलेटिक क्लब द्वारा नेताजी स्टेडियम में आयोजित स्पर्धा में पहला मैच आज बिहार पुलिस पटना और जिंदल स्टील रायगढ़ के बीच खेला गया। इस मैच में पहला गोल रायगढ़ के एम. सोरेन ने खेल के ११वें मिनट में किया। इस गोल के दो मिनट बाद ही पटना के सुधीर केरकेटा ने गोल करके अपनी टीम को बराबरी दिला दी। पहले हॉफ में मुकाबला १-१ से बराबर रहा। मैच के दूसरे हॉफ के दूसरे ही मिनट में सुधीर ने फिर से एक गोल दाग दिया और अपनी टीम को २-१ से आगे कर दिया। अंत में मैच का फैसला इसी स्कोर पर हुआ और पटना ने मैच जीतकर अंतिम १६ में स्थान बना लिया। मैच में रायगढ़ को १० पेनाल्टी कॉर्नर मिले लेकिन एक भी गोल में नहीं बदला जा सका। अब पटना का कल बीईसी रूड़की से मुकाबला होगा।
राजकुमार जी को ११०० पोस्ट होने पर हमारी तरफ से ढेर सारी बधाई...........
चर्चा को देता हूँ विराम..............आपको ललित शर्मा का राम-राम 

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

मिलिए श्याम कोरी”उदय” से—चिट्ठाकार चर्चा”(ललित शर्मा)

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया ये कहावत हमारे यहाँ चलती है. हमारा छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संपदाओं से भरा पूरा है. साथ ही साहित्यकारों और लेखकों की कोई कमी नहीं है. सहित्य जगत को उच्च कोटि के लेखक और साहित्यकार छत्तीसगढ़ की माटी ने दिये हैं.यहाँ चित्रोत्पला गंगा महानदी बहती है और माता कौशल्या का मायका होने के कारण दक्षिण कौशल प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है. स्वतंत्रता संग्राम में यहाँ के वीरों ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. मै ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की चिट्ठाकार चर्चा पर..................
हमारी चर्चा में शामिल आज के चिट्ठाकार हैं श्याम कोरी उदय जी. ये लेखनी के धनी हैं. गजल शेर और कविताओं के साथ लेखों के माध्यम से अपनी बात कहते हैं.इनके ब्लाग का नाम कडुवा सच है. तथा छत्तीसगढ़ ब्लाग पर भी अपना सक्रीय योगदान देते हैं.
इनकी ब्लाग प्रोफ़ाईल पर परिचय कुछ इस तरह है………

श्याम कोरी 'उदय'kory

मेरे बारे में

shyam kori 'uday' // फोन-9300957752 // बिलासपुर (छत्तीसगढ)
इनकी पहली पोस्ट

Friday, May 16, 2008


चांदी के सिक्के

दोस्तो क्यों परेशान होते हो,
क्यों हैरान होते हो,
चांदी के चंद सिक्कों के लिए,
ज़रा सोचो,
चांदी के सिक्कों का करोगे क्या,
क्या इन सिक्कों को
आंखो पर रखने से नींद आ जाएगी,
या फिर इनसे,
रात की करवटें रुक जायेंगी,
और तो और, क्या कोई बतायेगा,
कि इन सिक्कों को देख कर,
क्या ‘यमदूत’ डर कर लौट जायेंगे,
या फिर, इन सिक्कों पर बैठ कर,
तुम स्वर्ग चले जाओगे,
या इन्हें जेब में रख कर,
अजर-अमर हो जाओगे,

इनकी अद्यतन पोस्ट

अमीर किसान-गरीब किसान

हमारा देश किसानों का देश है कुछ वर्ष पहले तक एक ही वर्ग के किसान होते थे जिन्हे लोग 'गरीब किसान' के रूप में जानते थे जो सिर्फ़ खेती कर और रात-दिन मेहनत कर अपना व परिवार का गुजारा करते थे लेकिन समय के साथ-साथ बदलाव आया और एक नया वर्ग भी दिखने लगा जिसे हम 'अमीर किसान' कह सकते हैं।
... अरे भाई, ये 'अमीर किसान' कौन सी बला है जिसका नाम आज तक नहीं सुना .....और ये कहां से आ गया ... अब क्या बतायें, 'अमीर किसान' तो बस अमीर किसान है .... कुछ बडे-बडे धन्ना सेठों, नेताओं और अधिकारियों को कुछ जोड-तोड करने की सोची.... तो उन्होने दलालों के माध्यम से गांव-गांव मे गरीब-लाचार किसानो की जमीनें खरीदना शुरू कर दीं... और फ़िर जब जमीन खरीद ही लीं, तो किसान बनने से क्यों चूकें !!! ......... आखिर किसान बनने में बुराई ही क्या है........ फ़िर किसानी से आय मे 'इन्कमटैक्स' की छूट भी तो मिलती है साथ-ही-साथ ढेर सारी सरकारी सुविधायें भी तो है जिनका लाभ आज तक बेचारा 'गरीब किसान' नहीं उठा पाया ।
........ अरे भाई, यहां तक तो ठीक है पर हम ये कैसे पहचानेंगे कि अमीर किसान का खेत कौनसा है और गरीब किसान का कौन सा ? ............ बहुत आसान है मेरे भाई, जिस खेत के चारों ओर सीमेंट के खंबे और फ़ैंसिंग तार लगे हों तो समझ लो वह ही अमीर किसान का खेत है, थोडा और पास जाकर देखोगे तो खेत में अन्दर घुसने के लिये बाकायदा लोहे का मजबूत गेट लगा मिलेगा, तनिक गौर से अन्दर नजर दौडाओगे तो एक शानदार चमचमाती चार चक्का गाडी भी खडी दिख जायेगी ...... तो बस समझ लो यही 'अमीर किसान' का खेत है ।
........... अब अगर अमीर किसान और गरीब किसान में फ़र्क कुछ है, तो बस इतना ही है कि अमीर किसान के खेत की देखरेख साल भर होती है, और गरीब किसान के खेत में साल भर में एक बार "खेती" जरूर हो जाती है ।

अब देता हुँ चर्चा को विराम-आपको ललित शर्मा का राम-राम

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

हरफ़नमौला राजकुमार सोनी-बिगुल- “चिट्ठाकार चर्चा”(ललित शर्मा)

जब से कलम का अविष्कार हुआ है. तब से लगातार कलम निरंतर लिखते आ रही है.ऊंच नीच, जाति धर्म का भेदभाव किये बिना. इस कलम के द्वारा नित नयी रचनाएँ सामने आती रही हैं सदियों से. ऋग्वेद से लेकर आज के अख़बारों तक. अखबारों में कभी हमने भी कलम चलायी, कलम में बहुत ताकत है.जब अपनी टेबल पर हम काम करते थे तो यही शहर के बड़े-छोटे नेता आते और एक विज्ञाप्ति देकर फर्शी सलाम ठोकते थे कि आगामी संस्करण में उनकी विज्ञप्ति को जगह मिल जाये. आज वे बड़े-बड़े सरकारी पदों पर आसीन हैं. हमने कलम नहीं छोड़ी इसलिए वैसी ही किसी टेबल पर बैठ कर की बोर्ड पर उँगलियाँ चला रहे हैं.शायद जीवन पर्यंत यही चलता रहेगा. आज की चिट्ठाकार चर्चा में हम आपको ऐसे ही कलम के धनी लेखक पत्रकार से मिलवा रहे हैं. चलिए मै ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की चिट्ठाकार चर्चा पर............
चिट्ठाकार चर्चा में शामिल चिट्ठाकार है श्री राजकुमार सोनी जी इनका प्रभावशाली लेखन आकर्षित करता है. भाषा पर गहरी पकड़ है.विद्रूपों पर अपनी लेखनी को शमशीर बना कर कड़ा प्रहार करते हैं.अमिताभ बच्चन पर लिखी गई इनकी एक पोस्ट

साला..कुछ भी करेगा,उन्हें महानालायक कहने वाले पर कस कर प्रहार करती है. इनके बिगुल की आवाज दूर तक जा रही है. इस लिए अब गलत लिखने वालों को सावधान हो जाना चाहिए राजकुमार सोनी जी का बिगुल बज चूका है. इनकी प्रथम पोस्ट मंगलवार ५ जनवरी को प्रकाशित हुयी है............

..इनके विषय में जाने………….

Rajkumar Soni

मेरे बारे में

जिस दिन दुनिया में आंखे खोली वह तारीख थी- 19 नवंबर। भिलाई इस्पात संयंत्र के कोकवन में काम करने वाले मजदूर पिता ने मुझे बेफिक्री से सोते हुए देखकर कहा-हमारी झोपड़ी में तो लाट साहब आ गया है। धीरे-धीरे नाम पड़ गया- राजकुमार। स्कूल से भागकर फिल्म देखने के शौक के चलते जैसे-तैसे शिक्षा पूरी हुई। गांधी डिवीजन लेकर बीकाम पास। कुछ साल लेखकों के मठों और गिरोह से जुड़कर कविताएं लिखी, लेकिन जल्द ही पता चल गया कि कविताओं से पेट नहीं भरा जा सकता। कोरस, मोर्चा, घेरा, गुरिल्ला, देश जैसे नाटक लिखे। तमाम तरह की नौटंकियों से गुजरने के बाद फिलहाल कुछ सालों से सक्रिय पत्रकारिता में। इन दिनों दैनिक हरिभूमि रायपुर (छत्तीसगढ़) भारत में मुख्य नगर संवाददाता। मन में एक आदिम इच्छा अब भी कायम- यदि कभी वक्त ने साथ दिया तो सुपरहिट मसाला फिल्म जरुर बनाऊंगा। मोबाइल नंबर- 098271 93988

पहली पोस्ट 5 जनवरी 2010







गुड्डी से किरण तक

Tuesday, January 5, 2010

राजकुमार सोनी
जी हां.. यह सच है। बचपन में सभी किरणमयी नायक को गुड्डी कहकर ही बुलाते थे। गुड्डी के पिता दिलीप वर्मा सरकारी मुलाजिम थे। सरकार की नौकरी करने के दौरान उनकी इधर से उधर बदली हो जाया करती थी। बदली के दौरान ही जब वे ग्वालियर पहुंचे तो एक मार्च 1966 को किरण ने जन्म लिया। किरण को देखते ही सबसे पहले उनकी मां शकुन्तला देवी ने कहा था- मेरे घर गुड़िया आ गई। उन दिनों बाजार में वैसे खिलौने नहीं थे जैसे आज मौजूद हैं सो गुड़िया को भी वही लकड़ी वाला पुराना घोड़ा मिला जो बगैर बैठे हिलता-डुलता नहीं था। घोड़े के कान उमेंठते-उमेंठते जब गुड्डी लुका-छुपी और आमलेट-चाकलेट खेलने के काबिल हुई तो मां ने ही उसे बताया कि वह बड़ी होती जा रही है। उसके लिए अब ज्यादा आइना देखना ठीक नहीं है। ये करना है.. ये नहीं करना है। लड़कियां खिलखिलाकर नहीं हंस सकती जैसी सख्त हिदायतों के बीच गुड्डी ने परम्परागत रुप से यह तय कर लिया कि वह कभी भी अपने मां और पिता का दिल नहीं दुखाएगी। गुड्डी ने फिर वही किया जो उसके माता-पिता चाहते थे। गुड्डी ने शिक्षा को ही अपना लक्ष्य बनाया। बीएससी, एलएलबी, एलएलएम करने के बाद भी किरणमयी अब तक पढ़ ही रही हैं।

अद्यतन पोस्ट


नक्सलियों के गढ़ में लालाजी

Wednesday, February 3, 2010

राजकुमार सोनी
यदि छत्तीसगढ़ के बस्तर में पर्यटक नक्सली हिंसा की वजह से कम जाते हैं तो यह भी एक सत्य है कि नक्सलगढ़ में पर्यटकों का जाना लाला जगदलपुरी की वजह से भी होता हैं। यूं तो बस्तर में जानने -समझने के लिए बहुत कुछ है, लेकिन देश और दुनिया के शोधार्थियों की रुचि केवल तीन बिन्दुओं पर टिकी रहती है। पहले क्रम में नक्सली, दूसरे क्रम में मानव सभ्यता के जिंदा इतिहास आदिवासी है तो तीसरे क्रम में लोकजनजीवन में रचे-बसे लेखक, कवि लाला जगदलपुरी है। बस्तर का शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां कोई आदिवासी बच्चा अपनी मां से लालाजी के किस्से नहीं सुनता हो। स्याह रात में जब किसी पहाड़ से दिल पर उतर जाने वाली आवाज सुनाई दे और अचानक यह लगने लगे कि आसपास शहद टपकने की घटना होने लगी है तब समझिए कि कोई मां अपने जिद्दी लाड़ले को सुलाने के लिए लालाजी का ही किस्सा गुनगुना रही है। गोली और बारूद की गंध के बीच लालाजी की एक कथा उदास मां के चेहरे पर मुस्कुराहट ले आती है, और बच्चा तो उस दुनिया में पहुंच ही जाता है जहां टूथपेस्टों में घुसकर बाजार नहीं पहुंचता। लालाजी ने खूब लिखा है। इतना खूब कि साहित्य के गुंडों-मवालियों ने उनकी हर श्रेष्ठ रचना पर डकैती जरूर डाली है। लालाजी की रचनाओं के अपहरणकर्ता उनके सृजन को अपना बताकर घूमते रहे और लालाजी यही सोचकर खामोश रहे कि रचना अच्छी लगी होगी तभी किसी ने सेंधमारी की है अन्यथा कोई क्यों चुराता?
अब चलते है, ललित शर्मा का राम-राम

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

डॉ.सत्यजीत साहु-आधुनिक चिकित्साशास्त्र एंव ज्योतिषशास्त्र का संगम-“चिट्ठाकार चर्चा” (ललित शर्मा)

नए मौसम आते हैं, ऋतुएं बदलती है. ऋतुओं का संधि काल होता है. ज्योतिष के द्वारा संधियों का काल जाना जाता था. भास्कराचार्य ने सिद्धांत शिरोमणि में कहा है कि वेदों में यज्ञों का वर्णन है और यज्ञ काल के आश्रित होते हैं. इसलिए जिसमे काल का वर्णन हो वह ज्योतिषशास्त्र वेद का अंग कहलाता है. ज्योतिष वेद का नेत्र इसलिए कहा गया है कि ज्योतिष से समय दिखलाई पड़ता है.संधियाँ कई प्रकार हैं. प्रात: सांय की संधि में हवन संधि, मास की संधि, ऋतू की सन्धि, चातुर्मास्य की सन्धि, दोनों अयनो की सन्धि. यही सब संधियाँ पर्व भी कहलाती हैं. इनका सूक्ष्म ज्ञान ज्योतिष से ही होता है. पक्ष और मास की सन्धि चाहे चन्द्रमा के स्थूल अवलोकन से पूर्णिमा और अमावश्य को हो जाये पर, ऋतू, अयन, संवत्सर का संविज्ञान जब तक सायन गणनानुसार ज्योतिष का ज्ञान ना हो, तब तक नहीं हो सकता. अर्थात हमारे जीवन में ज्योतिष का महत्व प्राचीन काल से है और इसके बिना हम अधूरे हैं....अब आप सोच रहे होंगे की ज्योतिष के विषय में मै क्यों लिख रहा हूं? तो आज आपसे एक ज्योतिषी से परिचय करवाना  चाहता हूँ. तो अब मै ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ चिट्ठाकार चर्चा पर.............
हमारी आज की चिट्ठाकार चर्चा में शामिल चिट्ठाकार हैं डॉ.सत्यजित साहू. जो की पेशे से एम्.बी.बी.एस डाक्टर हैं तथा इनकी रूचि चिकित्सा के अध्यन के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र में भी है. जिसे पूरी श्रद्धा के साथ निभाते है. अपने मरीजों के हाथ की नाड़ी देखने के साथ-साथ उनकी जन्मकुंडली भी देखते हैं दोनों के सामंजस्य से सफल इलाज भी करते हैं. इनका डॉ.सत्यजीत साहू नामक ब्लाग है. इस पर वे अपने ज्योतिष विषयक पोस्ट लिखते हैं.
अपनी प्रोफ़ाईल पर ये परिचय कुछ इस तरह से देते है।

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मेरे बारे में

I am medical practioner and remedial astrologer neumerologist.I am desciple of my beloved gurudev swami chinmaya yogi (shri rajat bose )who is desciple of bhagwan shree rajneesh (osho).NIRAV RAJNEESH MEDITATION CENTER (NRMC) is located at Budhapara Raipur (C.G.)This center is alloted by Bhagwan Shree Rajneesh in year 1979. I am practising here under the guidence of my Gurudev since 1999.I am on this blog to publish my view's on ASTROLOGY,GURUSHISHYA PARAMPARA,SPIRITUALITY AND OCCULT SCIENCE.
इनकी पहली पोस्ट

शुक्रवार, २४ जुलाई २००९




Why Dr.Satyajit Sahu is blogging


When Ramkrishna paramhansa hear the vivakanand singing the song "man chalo nij niketane" has got the stanza that" oh heart please keep the virtue well within the heart and keep it secret". Once a learned man denies to share me his experience by quoting this. All the world is related with communication and if you are not relating your self to other then gradually all the virtuous thing will vanish and this earth remain barren . so change it i am doing this . and now it is here. Well now it starts on blog to share the thought of drsatyajitsahu. I ask myself that why i write this blog? my answer is that i have passion for SPIRITUALITY, ASTROLOGY,NUMEROLOGY ,OCCULT SCIENCE,MEDICINE, GENERAL PRACTICE OF MEDICINE ,GURUSHIYSHA PRAMPARA,MEDITION. I have been doing all this since last 10 years. Plenty of thougths and personal findings are there with this journey.I have been with my gurudev since 1999 and had seen learn a lot of things regarding all rounds of life.
Now i am on blog to share my wonderful life with my beloved gurudev and my experience
अद्यतन पोस्ट

मंगलवार, २ फरवरी २०१०


गुरुकृपा से साबर तंत्र सिद्धि


गुरुदेव से मार्गदर्शन में हम गुरुभाई साधना १० साल से कर रहे है .पहले साधना सौम्य प्रकृति की थी पर अब हम लोग साबर तंत्र की साधना कर रहे है ।
जनवरी के चन्द्र और सूर्य ग्रहण में हम लोगो को सिद्धि का बहुत अच्छा अवसर मिला और भैरवी माँ और गुरुकृपा से हमारी साधना सफल रही ।
साबर तंत्र से लोगो की समस्या का तात्कालिक हल दिलाने में हम लोग कामयाब हो रहे है .इसके परिणाम दिखने से हमारा उत्साह बढ़ गया है .हमारी सारी ऊर्जा अब साबर साधना की तरफ है ।
गृहस्थ लोगो के लिए अघोर साधना अनुकूल नहीं होती है .वैदिक साधना में रिजल्ट बहुत देर से आता है .तंत्र का जो आकर्षण चमत्कारिक रिजल्ट प्राप्त करने के लिए हमरे मन में बहुत दिनों से था । साबर तंत्र का रिजल्ट देखने से मन की वो अभिलाषा पूरी हुई ।
साबर में जिन शक्ति के माध्यम से कम होता है वो शुभ शक्ति होती है .सभी शक्ति में गुरु की शक्ति सबसे बड़ी होती है .इस बात का प्रमाण साबर का रिजल्ट देखने के बाद और पुखता हुआ ।
अध्यात्म में ,साधना में , सदगुरु मिलने से ही कम बनता है .
जय गुरु महाराज की जय

अब देते है चिट्ठाकार चर्चा को विराम-आप सभी को ललित शर्मा का राम-राम 

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

युवा प्रखर-मुखर मिथलेश दुबे- चिट्ठाकार-चर्चा (ललित शर्मा)

नवयुवाओं के विषय में बुजुर्ग लोग हमेशा सोचते हैं कि इनकी बुद्धि अभी परिपक्व नहीं हुयी है. ज्यादा दूर की नहीं सोच सकते. बिना सोचे समझे उल्टा-सीधा करते रहते हैं. जब भी मौका मिलता है तो उनको फटकार दिया जाता है.हमारे साथ भी यही होता था. हम भी जब कभी बुजुर्गों की महफ़िल में बोल उठते थे तो हमें कहा जाता था अरे! ये बात तुम्हारी समझ में आने की नहीं है. बड़ों के बीच में नहीं बोलना चाहिए. नव युवा भी इस समाज को अपने नजरिये से देखते हैं. उनकी व्यक्तिगत सोच होती है चितन  होता है. किसी भी काम को तत्परता से करते है और घनात्मक सोच भी रखते हैं. जिसकी सोच परिपक्व होती है और सही दिशा में सोचता है उसे अबाल वृद्ध कहा गया है. अब मै ललित शर्मा ले चलता हूँ आपको आज की चिट्ठाकार-चर्चा पर
हमारी चर्चा में शामिल आज के नव युवा चिट्ठाकार हैं मिथलेश दुबे जी. इनका अपनी बात कहने का अंदाज ही निराला है. कभी-कभी बहुत ही विचारोत्तेजक विषय चुनते है तथा उस पर सीधा हमला ही बोलते हैं ठांय-ठांय और कभी घर गृहस्थी की सोच मेंपड़ जाते हैं तो जलेबी समोसे को भी लपेटे में ले लेते हैं. इनकी मिसाईल चौतरफा वार करते है. जो इसकी जद में आ गया उसका तो कल्याण ही हो जाता है. इनका ब्लाग दुबे है तथातेताला, लख़नऊ ब्लॉगर एसोसिएशन,हिन्दी साहित्य मंच पर भी इनकी उपस्थिती है.
 ब्लाग प्रोफ़ाईल पर अपने विषय मे कुछ इस तरह लिखते है……….

Mithilesh Dubey

मेरे बारे में

कभी यूं गुमसुम रहना अच्छा लगता है , कभी कोरे पन्नों को सजाना अच्छा लगता है , कभी जब दर्द से दहकता है ये दिल तो , शब्दों में तुझको उकेरना अच्छा लगता है ।। अगर आप मुझसे बात करना चाहें तो संपर्क करें-09891584813
……इनकी पहली पोस्ट….

Saturday, May 16, 2009


Introduction
hi dosto, kise ho aap log mai aap logo ko batana chahta hun kee mai ek naya bloger hun, plese agar mai kuch bhi galat likhu to aap salah de sakto ho.
…अद्यतन पोस्ट.
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Friday, January 29, 2010


शरीर दिखाने वाले कपडे पहनने को आजादी कतई नहीं माना जा सकता----(मिथिलेश दुबे)
आजादी को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है। हर इंसान अपनी बुद्धि का सही उपयोग करते हुए आजादी की सीमा तय करता है। हर व्यक्ति स्वतंत्र रहना चाहता है, परंतु इसकी अधिकता कभी-कभी नुकसानदेह साबित होती है। आज बेटी-बेटे को समानता का दर्जा दिया जाता है, लेकिन समाज का माहौल देखते हुए लडकियों की सुरक्षा की दृष्टि से माता-पिता उनकी आजादी की सीमाएं तय कर देते हैं, जो कि किसी दृष्टि से गलत नहीं है। यही बात बेटों पर भी लागू होती हैं। उन्हें भी अनुशासित करने के लिए समय-समय पर उनकी आजादी की सीमाएं तय करना बहुत जरूरी है। आजादी में संतुलन बहुत जरूरी है। मेरे विचार से आजादी का सही अर्थ है-सामंजस्य।
अगर हर इंसान आजादी के साथ अनुशासन का भी महत्व समझे तभी देश सही मायने में आजाद होगा। वर्षो की गुलामी सहने और लाखों देशवासियों का जीवन खोने के बाद हमने यह बहुमूल्य आजादी पाई है। लेकिन आज की युवा पीढी आजादी का वास्तविक अर्थ भूलती जा रही है। पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण कर वह अपनी सभ्यता, संस्कृति और विरासत से दूर होती जा रही है। नशाखोरी, मौज-मस्ती करना, धर्म और जाति के नाम पर दंगे करना और राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति पहुंचाना भी आज कुछ लोगों को गलत नहीं लगता। अधिकारों की दुहाई देने वाले क्या कभी अपने कर्तव्यों की भी बात करते हैं? सच तो यह है कि ऐसा करना अमूल्य आजादी का दुरुपयोग है।
आज हमारे देश में चारों ओर भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और आतंक का अंधकार छाया है। ऐसी स्थिति में सभी देशवासियों का कर्तव्य है कि वे एक भयमुक्त, सुव्यवस्थित, सुसंगठित और विकसित समाज की स्थापना में योगदान करें। युवा पीढी आजादी के साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी समझे। अपनी आजादी के साथ दूसरों की स्वतंत्रता एवं निजता का भी ध्यान रखे। अनुशासित हो, केवल अपनी मनमर्जी न करे। मेरे विचार से आजादी की एक सीमा रेखा अवश्य होनी चाहिए। इसी में परिवार, समाज और देश का कल्याण संभव है। धर्म और जाति के भेदभाव के बिना सभी नागरिक आजादी के साथ सुकून की सांस ले सकें, आजादी का यही असली मकसद होना चाहिए। आजादी का सीधा अर्थ होता है किसी पर निर्भर न होना, आत्मसम्मान के साथ सर उठा कर जीना। लेकिन आज लोग अपने निजी स्वार्थो के लिए आजादी को मनचाहे ढंग से परिभाषित करते हैं। दूसरों की असुविधा को ध्यान में रखे बिना हर काम अपनी मनमर्जी से करने, अनुशासन के नियमों को तोडने और पश्चिमी सम्यता का अंधानुकरण करते हुए शरीर दिखाने वाले कपडे पहनने को आजादी कतई नहीं माना जा सकता। बौद्धिक स्तर पर हम कितने आजाद हैं, यह बात ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अब देता हुँ चर्चा को विराम-आप सभी को ललित शर्मा का राम