बुधवार, 2 जून 2010

मिलिए संस्कृत बोलने वाले चिट्ठाकार परिवार से----चिट्ठाकार चर्चा----ललित शर्मा

विगत कई माह से चिट्ठाकार चर्चा पर चर्चा नहीं लिख पाया जिसका मुझे खेद है पता नहीं पिछली चर्चा के पश्चात क्या ग्रहण लगा। आज सोचा की इसे पुन: प्रारंभ किया जाए, जिससे नए चिट्ठाकारों का ब्लाग जगत से परिचय होना पुन: प्रारंभ हो। इसके तहत हम एक चिट्ठाकार एवं उसके चिट्ठे की चर्चा करते हैं। हमारे आज के यशस्वी चिट्ठाकार हैं आचार्य धनंजय शास्त्री तथा उनके चिट्ठे का नाम है संस्कृते किम् नास्ति। मैं ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ आज की चिट्ठाकार चर्चा में  आचार्य धनंजय शास्त्री से मिलवाने।

आचार्य धनंजय शास्त्री से मेरा परिचय लगभग 15 वर्ष पुराना है, जब वह गुरुकुल महाविद्यालय आमसेना उड़ीसा में अध्ययन एवं अध्यापन करते थे। मै भी उस वक्त गुरुकूल महाविद्यालय के ग्रंथालय से ज्ञान पिपासा शांत करने जाता था। गर्मी के महीने में एक सप्ताह घर  से दूर रहकर स्वाध्याय करता था। तभी मेरी भेंट आचार्य धनंजय शास्त्री से हुयी थी। इन बातों को एक अरसा बीत गया। गुरुकूल में एक सुबह देखा कि एक ब्रह्मचारी कषाय वस्त्र धारण किए एक हाथ में पांच सात ग्रंथ पकड़े हुए चले आ रहे हैं। मैने इनके विषय में पूछा तो प्रद्युम्न शास्त्री ने बताया कि ये आचार्य धनंजय शास्त्री हैं तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। संगीत विशारद भी हैं संगीत की शिक्षा भी देते है संस्कृत के साथ। सभी प्रकार वाद्य यंत्र वादन में भी पारंगत है। तब मेरी इनसे मिलने की जिज्ञासा हुयी। इन्होने मुझे अपने कमरे आमंत्रित किया। वहां पहुंच कर अचंम्भित रह गया कि महाविद्यालय के जैसा ग्रंथागार तो इनका कमरा है। संस्कृ्त के प्राचीन ग्रंथों से इनका कमरा भरा हुआ हैं उसमें जमीन पर एक चटाई बि्छाने बस की जगह थी जिस पर धनंजय शास्त्री विश्राम करते थे। बाकी पूरा कमरा ग्रंथों से भरा हुआ था। यह उनका नि्जि ग्रंथालय था।

मु्झे तो जैसे खजाना मिल गया था जब भी आवश्यक्ता होती इनके पास पहुंच जाता। मनवान्छित ग्रंथ मिल जाता स्वाध्याय हेतु। समया भाव के कारण वर्ष में एक दो मुलाकातें तो इनसे तय थी। एक बार गुरुकूल गया तो पता चला इन्होने वहां से स्थानांतरण ले लि्या है और खरियार रोड़ उड़ीसा में ही रहने लगे हैं।  इनसे मिलने का लोभ नहीं छोड़ पाया। इनसे मिलने मैं पहुंच ही गया। बड़ी आत्मीयता से मुलाकात हुई। जब भी इनसे मिलता था तो यह लगता था कि किसी पिछले जन्म के साथी से मिल रहा हुं। जो स्वयं भी ज्ञान पिपासु है जिज्ञासु है मेरी तरह।

आज शास्त्री जी ब्लाग जगत में आए तो पुन: यादें ताजा हो उठी। इनके साथ भी वही समस्या थी जो एक नए ब्लागर के साथ होती है। हिन्दी लिखने की, लेकिन मुझे इनसे मिलने के लिए जाने का समय ही नहीं मिल पा रहा था। आज कल शास्त्री जी दुर्ग में रहते हैं। इन्होने एक दिन मुझे बताया कि वे नेट पर उपलब्ध हैं तो बड़ी खुशी हुयी। नहीं तो दो चार वर्षों से इनसे मुलाकात नहीं हुयी थी। अब नेट पर प्रतिदिन हो जाती है। अभी दिल्ली जाने के पूर्व मैने इनसे वादा किया था कि वापस आने पर आपसे मिलने जरुर आऊंगा। एक दिन मैने इन्हे पूछा था कि अल्पना जी मनोविज्ञान से संबंधित कोई शोध सामग्री आपके पास मिल जाएगी क्या? क्योंकि देश विदेश से संस्कृ्त के शोधार्थी इनके पास आते रहते हैं शोध कार्य से संबंधित अध्यन के लिए। 

दिल्ली से आने के पश्चात मैं और अल्पना जी इनसे मिलने गए। एक पंथ दो काज, इन्हे भी ब्लाग संबंधित प्राथमिक जानकारी दे देगें तथा अल्पना जी भी अपनी शोध सामग्री देख लेंगी। भीषण गर्मी की दोपहरी हम इन तक पहुंचे तो वहां पर स्थानीय टीवी चैनल अभी तक के सतीश बौद्ध भी मौजुद थे। जो शास्त्री जी का साक्षात्कार लेने आए थे। शास्त्री जी का विवाह हो चुका है इन्होने माता पिता की आज्ञा का पालन किया। इनकी अर्धांगिनी आचार्यानी कुसुमांगी जी से पहली मुलाकात हुई। इनके विवाहोपरांत हमारी पहली मुलाकात थी। सबसे खास बात यह है कि इनका परिवार संस्कृ्त में ही वार्तालाप करता है लगभग दो साल का बालक भी। इससे इनका देव भाषा संस्कृत के प्रति समर्पण परिलक्षित होता है।

हमारे पहुंचने पर भाभी जी ने भोजन की तैयारी कर रखी थी। धनंजय शास्त्री जब ब्रह्मचारी थे तो उन्हे हम भोजन की तैयारी करने के लिए नहीं कह सकते थे लेकिन गृहस्थ जीवन में आने के बाद तो हमारा अधिकार बनता है कि हम भोजन करें। हमारी वर्षों के बाद भेट से शास्त्री जी आनंदित थे हमने सभी ने भोजन किया तभी देखा कि शास्त्री जी ने मठा (छाछ) से हाथ धोना शुरु कर दि्या तभी अचानक ध्यान आने पर उन्होने हाथ धोने के लिए पानी लिया। तब मुझे अहसास हुआ कि पुराने साथी से मिलने की खु्शी क्या होती है? मनुष्य अपने को ही भूल जाता है। अभिभूत हो जाता है स्वयं का ही भान नहीं रहता,यह ऐसी खुशी है, अद्भुत आनंद है।

मैने ब्लाग लेखन के विषय में प्रारंभिक जानकारियाँ दी तथा उन्हे हिन्दी लिखने के लिए की बोर्ड का इस्तेमाल करना बताया। अब वे अभ्यास में लगे हैं देवनागरी लिखने के, अब हमें उनके द्वारा लिखी गयी प्रविष्टियाँ पढने मिलेगी। एक विद्वान का ब्लाग जगत से जुड़ना बड़े हर्ष की बात है जिसका लाभ सभी को प्राप्त होगा।  मै पूर्व में भी बता चुका हुँ कि यह 36गढ का एकमात्र परिवार है जो दैनिक जीवन में वार्तालाप के लिए संस्कृत का ही उपयोग करता है। इसके पश्चात हम सबसे विदा ले के चल पड़े अपने घर की ओर...............

फ़िर मिलते हैं आपसे किसी नए ब्लागर के साथ, तब तक के लिए इजाजत दिजिए--राम राम