विगत कई माह से चिट्ठाकार चर्चा पर चर्चा नहीं लिख पाया जिसका मुझे खेद है पता नहीं पिछली चर्चा के पश्चात क्या ग्रहण लगा। आज सोचा की इसे पुन: प्रारंभ किया जाए, जिससे नए चिट्ठाकारों का ब्लाग जगत से परिचय होना पुन: प्रारंभ हो। इसके तहत हम एक चिट्ठाकार एवं उसके चिट्ठे की चर्चा करते हैं। हमारे आज के यशस्वी चिट्ठाकार हैं आचार्य धनंजय शास्त्री तथा उनके चिट्ठे का नाम है संस्कृते किम् नास्ति। मैं ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ आज की चिट्ठाकार चर्चा में आचार्य धनंजय शास्त्री से मिलवाने।
आचार्य धनंजय शास्त्री से मेरा परिचय लगभग 15 वर्ष पुराना है, जब वह गुरुकुल महाविद्यालय आमसेना उड़ीसा में अध्ययन एवं अध्यापन करते थे। मै भी उस वक्त गुरुकूल महाविद्यालय के ग्रंथालय से ज्ञान पिपासा शांत करने जाता था। गर्मी के महीने में एक सप्ताह घर से दूर रहकर स्वाध्याय करता था। तभी मेरी भेंट आचार्य धनंजय शास्त्री से हुयी थी। इन बातों को एक अरसा बीत गया। गुरुकूल में एक सुबह देखा कि एक ब्रह्मचारी कषाय वस्त्र धारण किए एक हाथ में पांच सात ग्रंथ पकड़े हुए चले आ रहे हैं। मैने इनके विषय में पूछा तो प्रद्युम्न शास्त्री ने बताया कि ये आचार्य धनंजय शास्त्री हैं तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। संगीत विशारद भी हैं संगीत की शिक्षा भी देते है संस्कृत के साथ। सभी प्रकार वाद्य यंत्र वादन में भी पारंगत है। तब मेरी इनसे मिलने की जिज्ञासा हुयी। इन्होने मुझे अपने कमरे आमंत्रित किया। वहां पहुंच कर अचंम्भित रह गया कि महाविद्यालय के जैसा ग्रंथागार तो इनका कमरा है। संस्कृ्त के प्राचीन ग्रंथों से इनका कमरा भरा हुआ हैं उसमें जमीन पर एक चटाई बि्छाने बस की जगह थी जिस पर धनंजय शास्त्री विश्राम करते थे। बाकी पूरा कमरा ग्रंथों से भरा हुआ था। यह उनका नि्जि ग्रंथालय था।
मु्झे तो जैसे खजाना मिल गया था जब भी आवश्यक्ता होती इनके पास पहुंच जाता। मनवान्छित ग्रंथ मिल जाता स्वाध्याय हेतु। समया भाव के कारण वर्ष में एक दो मुलाकातें तो इनसे तय थी। एक बार गुरुकूल गया तो पता चला इन्होने वहां से स्थानांतरण ले लि्या है और खरियार रोड़ उड़ीसा में ही रहने लगे हैं। इनसे मिलने का लोभ नहीं छोड़ पाया। इनसे मिलने मैं पहुंच ही गया। बड़ी आत्मीयता से मुलाकात हुई। जब भी इनसे मिलता था तो यह लगता था कि किसी पिछले जन्म के साथी से मिल रहा हुं। जो स्वयं भी ज्ञान पिपासु है जिज्ञासु है मेरी तरह।
आज शास्त्री जी ब्लाग जगत में आए तो पुन: यादें ताजा हो उठी। इनके साथ भी वही समस्या थी जो एक नए ब्लागर के साथ होती है। हिन्दी लिखने की, लेकिन मुझे इनसे मिलने के लिए जाने का समय ही नहीं मिल पा रहा था। आज कल शास्त्री जी दुर्ग में रहते हैं। इन्होने एक दिन मुझे बताया कि वे नेट पर उपलब्ध हैं तो बड़ी खुशी हुयी। नहीं तो दो चार वर्षों से इनसे मुलाकात नहीं हुयी थी। अब नेट पर प्रतिदिन हो जाती है। अभी दिल्ली जाने के पूर्व मैने इनसे वादा किया था कि वापस आने पर आपसे मिलने जरुर आऊंगा। एक दिन मैने इन्हे पूछा था कि अल्पना जी मनोविज्ञान से संबंधित कोई शोध सामग्री आपके पास मिल जाएगी क्या? क्योंकि देश विदेश से संस्कृ्त के शोधार्थी इनके पास आते रहते हैं शोध कार्य से संबंधित अध्यन के लिए।

हमारे पहुंचने पर भाभी जी ने भोजन की तैयारी कर रखी थी। धनंजय शास्त्री जब ब्रह्मचारी थे तो उन्हे हम भोजन की तैयारी करने के लिए नहीं कह सकते थे लेकिन गृहस्थ जीवन में आने के बाद तो हमारा अधिकार बनता है कि हम भोजन करें। हमारी वर्षों के बाद भेट से शास्त्री जी आनंदित थे हमने सभी ने भोजन किया तभी देखा कि शास्त्री जी ने मठा (छाछ) से हाथ धोना शुरु कर दि्या तभी अचानक ध्यान आने पर उन्होने हाथ धोने के लिए पानी लिया। तब मुझे अहसास हुआ कि पुराने साथी से मिलने की खु्शी क्या होती है? मनुष्य अपने को ही भूल जाता है। अभिभूत हो जाता है स्वयं का ही भान नहीं रहता,यह ऐसी खुशी है, अद्भुत आनंद है।
मैने ब्लाग लेखन के विषय में प्रारंभिक जानकारियाँ दी तथा उन्हे हिन्दी लिखने के लिए की बोर्ड का इस्तेमाल करना बताया। अब वे अभ्यास में लगे हैं देवनागरी लिखने के, अब हमें उनके द्वारा लिखी गयी प्रविष्टियाँ पढने मिलेगी। एक विद्वान का ब्लाग जगत से जुड़ना बड़े हर्ष की बात है जिसका लाभ सभी को प्राप्त होगा। मै पूर्व में भी बता चुका हुँ कि यह 36गढ का एकमात्र परिवार है जो दैनिक जीवन में वार्तालाप के लिए संस्कृत का ही उपयोग करता है। इसके पश्चात हम सबसे विदा ले के चल पड़े अपने घर की ओर...............
फ़िर मिलते हैं आपसे किसी नए ब्लागर के साथ, तब तक के लिए इजाजत दिजिए--राम राम
23 टिप्पणियाँ:
...behad prasanshaneey charchaa !!!
खास बात यह है कि इनका परिवार संस्कृ्त में ही वार्तालाप करता है लगभग दो साल का बालक भी। इससे इनका देव भाषा संस्कृत के प्रति समर्पण परिलक्षित होता है।
.........vaah, ye to garv ki baat hai.
धन्यमस्तु अयं परिवार: ; धन्यं भारतदेशम् ।
very good personality
thanx
उम्दा और सम्माननीय प्रस्तुती ,संस्कृत आज भी अच्छी भाषा है अगर उसका समुचित प्रचार प्रसार हो ,दुर्भाग्य से आज अच्छी चीजों का प्रचार प्रसार नहीं हो पा रहा है |
क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।
आइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !
आचार्य धनञ्जय शास्त्री जी का परिचय देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। एक बार हम भी आपके साथ उनसे मिलने अवश्य ही जायेंगे। हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि ब्लोगजग आचार्य जी के ज्ञान से लाभार्जन करेगा।
आचार्य धनञ्जय जी से मिल कर बहुत अच्छा लगा!
अच्छा लगा... प्राचीन काल की बात है... बिहार में इक विद्वान थे... मंडन मिश्र... संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे... व्यकार्नाचार्य थे... इनके बारे में कहा जाता है कि इनका तोता भी संस्कृत में वार्तालाप करता था ... अदभुद है शास्त्री जी की प्रतिभा... संस्कृत जो कि सबसे वैज्ञानिक भाषा है... शास्त्री जी के प्रयास से ही बच पाएगी... विलक्षण प्रतिभा के स्वामी शास्त्री जी से परिचय करवाने के लिया आपका बहुत बहुत साधुवाद !
aisa bhi parivar hai jo sanskrit mein baat karta hai jaan kar hum aashcharychakit hain....vaise manovighyaan par kis shodh ki baat kar rahe hain aap, kisse material chaahiye tha aur kis topic par, mila kya...vistaar mein bataayein toh kripa hogi
खास बात यह है कि इनका परिवार संस्कृ्त में ही वार्तालाप करता है लगभग दो साल का बालक भी। इससे इनका देव भाषा संस्कृत के प्रति समर्पण परिलक्षित होता है।
कितने गर्व की बात है ..बहुत शुक्रिया ऐसे परिवार से मिलाने का .
किसी भाषा के प्रति समर्पण की यह पराकाष्ठा है। आचार्य जी के प्रति आभार!
देवभाषा के प्रति ऎसा समर्पण भाव्! अद्भुत्!
मान गए भई.....ऎसे प्रतिभासम्पन्न परिवार तो एक मिसाल है....इनसे परिचय कराने के लिए आप भी साधुवाद के पात्र है!
और छत्तीसगढ के ऐसे शख्सियत के बारे मे हम जानते ही न थे। बहुत अच्छा लगा। ललित भाई। उन्हे हमारा प्रणाम्। और ललित भाई को भी। मिलने का अवसर प्राप्त होगा इसी आशा के साथ्……॥
aap ne khjana nhi poori tksal hi dhoondh li hai
bhar desh aise rtno v manikyon ki khan hai
mera bhi prnam nivedn hai
dr ved vyathit
आभार.
आज मेरी ये अंतिम टिप्पणियाँ हैं ब्लोग्वानी पर.
कुछ निजी कारणों से मुझे ब्रेक लेना पड़ रहा हैं .
लेकिन पता नही ये ब्रेक कितना लंबा होगा .
और आशा करता हूँ की आप मेरा आज अंतिम लेख जरूर पढोगे .
अलविदा .
संजीव राणा
हिन्दुस्तानी
स्वामी शास्त्री जी से परिचय करवाने के लिया आपका बहुत बहुत शुक्रिया..
sanskurit ke prti samarpit bhaav
vaah!
VERY NICE.........
दक्षिण के किसी एक गाँव के बारे में जरूर पढ़ा था जहां सभी लोग संस्कृत में वार्तालाप करते हैं.लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसा सुन कर सुखद आश्चर्य हुआ.
वाह!प्रेरणाप्रद लिखा है।
Are wah ye to bahut achcha hua. inase kabhi wartalap jaroor karungee.
वाह ऐसे भी लोग हैं जो देवभाषा में ही अब भी वार्तालाप करते हैं । इनका ब्लॉग तो देखना पडेगा । मेरा संस्कृत का तो विशेष नाता नही है परंतु घर परिवार में माता पिता तथा बडे भाई संस्कृत की काफी जानकारी रखते थे । आचार्य धनंजय शास्त्री जी से मिलवाने का अनेक आभार ।
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