मित्रों चिटठा परिवार में नित नए सदस्यों का आगमन हो रहा है. जब परिवार में कोई नया सदस्य जुड़ता है तो उसके विषय में जानने की अभिलाषा भी हमारे मन में होती है और उसे भी आशा होती है कि चिटठा परिवार से परिचय हो. कई दिनों से ये बात मेरे मन में थी कि चिटठा परिवार के नए सदस्य का हम ह्रदय से स्वागत करें. तथा उसके विषय में कुछ जाने. कई आज भी ऐसे कई चिट्ठाकार और चिट्ठे हैं जिनके विषय में हम बहुत कम जानते हैं. इसी कमी को पूरा करने के लिए के लिए चिटठाकार चर्चा नामक मंच का उदय हुआ है. हम मिलवायेंगे आपको प्रतिदिन एक चिट्ठाकार से. आशा है कि आपका प्यार और आशीर्वाद हमें मिलता रहेगा.
आज हम एक प्रतिभाशाली चिट्ठाकार से आपको मिलवाते हैं तथा उनके विषय में प्रारंभिक जानकारी देते हैं. ये हैं हमारे सूर्यकान्त गुप्ता जी को नया तो नहीं कहा जा सकता वे ब्लॉग जगत में जनवरी २००९ में आए थे लेकिन सक्रीय रूप से ब्लाग लेखन दो माह पूर्व ही प्रारंभ किया है. आप हंसमुख स्वभाव के मिलनसार व्यक्ति हैं. अपने मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को बिना किसी लगा लपेट के अपने ब्लाग "उमड़त-घुमड़त विचार" पर व्यक्त करते हैं. हिंदी और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओँ में लिखते हैं. बड़ी सहजता से कम शब्दों में बिना किसी विद्वता का बघार दिये अपनी बात कहते हैं. इनका लेखन पाठकों का ध्यानाकर्षण करता है.इनका एक ब्लाग "दैनिक रेल यात्री का सफरनामा" भी है."उमड़त-घुमड़त विचार" पर आज इनकी पचासवीं पोस्ट है. हम इनको हार्दिक बधाई देते हैं.
सूर्यकान्त गुप्ता
मेरे बारे में
मै केंद्रीय उत्पाद एवं सेवा शुल्क विभाग में निरीक्षक के पद पर कार्यरत. ननिहाल में पढ़ा बढ़ा, माता शैशवावस्था में ही व पिता मेरी माध्यमिक शिक्षा के दौरान दिवंगत नानी, व दोनों मामियों के आंचल में पला, नानाजी व दोनों मामाजी के स्नेह में, उनकी छात्र छाया में पढ़ा बढ़ा और इस मुकाम तक पहुंचा.
सूर्यकांत गुप्ता जी की पहली पोस्ट
बुधवार, १४ जनवरी २००९
सूक्तियां जीवन में कितनी अनुकर्णीय
सूक्तियां जीवन में कितनी अनुकर्णीय
श्री राम चरित मानस गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित एक महाकाव्य जिसके माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जीवनी उनके पूर्वज से लेकर उनकी अगली पीढी का वर्णन इस महाकाव्य के सात कांडों/सोपानों में वर्णित कर आज के युग में उनके आदर्शों पर चलने की शिक्षा दी गई है, इस महाकाव्य में गोस्वामी तुलसीदासजी द्वारा मानव की महिमा का बखान इस तरह किया गया है;'बड़े भाग मानुष तन पावा' क्यों?मानव ही ऐसा प्राणी है जिसमे बुद्धि व विवेक दोनों होता है। बुद्धि तो इस जगत के सभी प्राणियों में है। यह अलग बात है की आज का मानव अपनी अनंत अभिलाषाओं की पूर्ति के चक्कर में अपना विवेक ग़लत रास्ते पर दौडाने लगा है। परिणाम तनाव उत्कंठा व अनेक व्याधियों को निमंत्रण। ऐसी स्थिति में हम क्षण भर ऐसा साहित्य ऐसी किताबें ऐसा शास्त्र पढ़ें जो पग पग में हमें जीवन जीने की कला से परिचित करावे। उनमे उद्धृत सूक्तियों को गांठ बाँध कर जतन लें और वक्त बेवक्त उन सूक्तियों को याद कर अपनी जीवन शैली में सुधार ले आयें तो कितना अच्छा होगा। इसी उद्देश्य के साथ कुछ सूक्तियों का उद्धरण यहाँ प्रस्तुत है।
१ हमेशा भाग्य के धागों को कौन देख सकता है? क्षण भर के लिए हितकारी अवसर आता है हम उसे खो देतेहैं।
२ सहानुभूति एक विश्वव्यापी भाषा है जिसे सभी प्राणी समझते हैं।
३ आलोचना रूपी वृक्ष फल और कीड़े दोनों को ही अलग कर देता है।
४ शत्रु केवल देह पर आघात करता है किंतु स्वजन ह्रदय पर।
५ प्रत्येक पत्थर कुछ बनना चाहता है औरवह अपने आपको प्रसन्नता से उन हाथों में सौंप देता है जिनमें छेनी हथौड़ी रहती है।
६ न अतीत के पीछे दौड़ो और न ही भविष्य की चिंता में पडो, क्योंकि अतीत है वह तो नष्ट हो गया है और भविष्य अभी आया नही है।
यह प्रयास आपको कैसा लगा बताएं. आपका स्नेह मेरा मार्गदर्शन करेगा।
29 टिप्पणियाँ:
गुप्ता जी से मुलाकात हो चुकी है और वे ब्लाग जगत मे अपनी पहचान बनाने मे सफ़ल होंगे ऐसी शुभकामनायें।
आपका यह नवीन प्रयास सराहनीय है।
कुछ ब्लॉगों पर हालांकि पहले भी ऐसे प्रयास किए जा चुके हैं, किन्तु विशुद्ध इसी विषय को ले कर किया जा रहा यह संभवत: पहला प्रयास है।
निरंतरता बनाए रखेंगे, उम्मीद है।
सूर्यकांत गुप्ता जी से मुलाकात हो चुकी है पहले भी, उन्हें शुभकामनाएँ पचावसीं पोस्ट की
बी एस पाबला
गुप्ता जी का हिन्दी चिट्ठाकारी में अभिनन्दन है! उनकी लेखनी से अनुभव की सुगंध आ रही है।
आपका यह नवीन प्रयास सराहनीय है... गुप्ता जी का हिन्दी चिट्ठाकारी में अभिनन्दन ....
आपका प्रयास सराहनीय है!
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं!
aapka ya anutha prayaas naman ogya hai... bahut bahut dhnyavaad...
नये ब्लॉग के लिये बधाई! बहुत अच्छा ब्लॉग है!!
वाह! ललित जी सबसे पहले इस नेक काम के लिए बधाई !!! सूर्य कान्त गुप्ताजी से मिलकर अच्छा लगा !! ब्लॉगजगत में इनके योगदान से सभी को लाभ मिले!!!
गुप्ताजी को शुभकामनाएं और आपकी जितनी भी प्रसंशा की जाये उतनी कम है. आप हमेशा अपके नाम अनुरुप ललित प्रयोगधर्मी हैं, आपको इस कार्य मे सफ़लता के लिये शुभकामनाएं.
रामराम.
waah, ek aur naye yatree. barhiyaan hai.
sसराहणीय प्रयास शुभकामनायें
आदरणीय शर्मा जी !
मैं इससे कितना खुश हूँ आप जान सकते हैं , क्योंकि
जब आपसे पहली बार फोनालाप हुआ था तो मैंने ऐसे
प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया था और उम्मीद की
थी कि आप लोंगों से सौजन्य से ऐसा हो , आज ऐसा पाकर
बेहद खुश हूँ , आपकी दृष्टि की तारीफ करूँगा जो 'भेड़िया-धसान' में
बहने के खिलाफ 'यथेष्ट' की पहचान कर सामने लाती है ...
इस गंभीर कार्य को आप काबिले-अंजाम तक पहुंचाते रहेंगे , ऐसा विश्वास है हमें ...
.
एक अच्छे चिट्ठाकार से आपने मिलवाया , बड़ा अच्छा लगा , खासकर इनकी
छत्तीसगढ़ी के प्रति जागरूकता प्रणम्य है ...
.......... आभार ,,,
वाह ललित जी तो अनशन में बैठे बैठे ई सब हो रहा था तभिए तो कहते हैं कि जो होता अच्छे के लिए होता ..आल इज वैल .आल इज वैल । ये हुआ धमाका ..न. आप जानिए ..ई नयका ब्लोग एक दम ठां लगा । गुप्ता जी से एक बार बतिया ही चुके हैं , आज आपने विस्तृत परिचय भी करवा दिया बहुत ही अच्छा लगा उनसे मिलकर
अजय कुमार झा
आपका यह नवीन प्रयास सराहनीय है....!!
आपका प्रयास सराहनीय है!
जो भी करेंगे अच्छा ही होगा।
आप दोनों को बधाई
लो जी सबहै मिल लिए
और हम ही बिना मिले रहे गये
कोई हमें भी सूर्य जी के दर्शन करवा दें भाई
गुप्ता जी को गुप्त तो वैसे भी नहीं रहना था
सूर्य वे हैं ही कान्ति तो बिखेरेंगे ही
आपको बधाई और उनको शुभकामनायें
दोनों में क्या है फर्क ये बतलायें।
शानदार प्रयास है। रोज एक ब्लागर का परिचय कराया जा सकता है।
बहुत सुन्दर प्रयास है ललित भईया. इस प्लेटफार्म से हिन्दी ब्लागर्स के ब्लाग लेखन की सार्थकता व समर्थता की समालोचना व समीक्षा हो पावेगी.
इस संबंध में मेरा एक सुझाव है कि इसे सामूहिक ब्लाग न बनाकर व्यक्तिगत ही रखें.
Shree Sooryakaant gupta ji ka swagat hai, unhen dheron shubhkaamnayen aur aapka aabhar unse milwane ke liye..
Jai Hind...
Waah...behad sarahneey tatha anukarneey prayas hai!Bade manse aapne yah post likhi hai!
बुहत अच्छा विचार है ललित जी। पुराने जमाने में "चिट्ठा-विश्व" के समय में "कच्चा चिट्ठा" नामक स्तम्भ से चिट्ठाकारों का परिचय दिया जाता था जो कि बहुत रुचिकर हुआ करता था। इसके अलावा निरन्तर, अक्षरग्राम ब्लॉग एवं कुछ अन्य सामूहिक मंचों पर चिट्ठाकारों का परिचय दिया जाता था। आपने इसके लिये एक अलग चिट्ठा बनाकर बहुत अच्छा प्रयास किया।
सूर्यकान्त जी का हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है।
स्वागत है ! इस नये मंच की बधाई ।
सर्व प्रथम ललित भाई को मेरा प्रणाम
आज मैं कुछ कह नहीं सक रहा हूँ उनके इस प्रयास के
लिए क्योंकि जो भी आज मेरे द्वारा लिखा जा रहा है वह
"ललित संजीव तव प्रेरणा लिखे पोस्ट उनचास
ऊर्जा बीच में भरत रह्यो भाई ललित, शरद कोकास
और यह चौपाई भी मुझे यहाँ उद्धृत करने को विवश कर रही है:
प्रति उपकार करौ का तोरा. सन्मुख होई न सकत मन मोरा.
और यह सब तो "नाथ न कछु मोरी प्रभुताई. सो तव प्रताप तीनो भाई
(संजीव ललित शरद)
इतना ही नहीं आज मेरे सभी अभिनंदनीय ब्लॉगर मित्रों ने (चाहे वे वरिष्ठ
हों या कनिष्ठ ) और मेरे उत्साह को बढ़ा दिया उन सभी का आभारी हूँ
आभार मिलवाने का!!
सूर्यकांत गुप्ता जी को शुभकामनाएं.
सुन्दर प्रयास है.
नये ब्लॉग के लिये बधाई!
बेहतर...
आप तो छा जाना जानते हैं...
शुभकामनाएं. सफल हों. हिन्दी चिट्ठाकररों को एक और सार्थक मंच मिले.
एक टिप्पणी भेजें