चिट्ठाकार चर्चा में शामिल हमारे आज के चिट्ठाकार श्री पी.सी.गोदियाल जी हैं.इनका लेखन बहुत ही प्रभावी है. किसी एक मांजे हुए खिलाडी की भांति अपनी कविताओं और लेखों से व्यवस्था पर सीधी चोट करते हैं. इनके लेखन में एक आक्रोश झलकता है, जो सीधा सीधा प्रश्न कर पाठकों से एक संवाद स्थापित करता है. ये अपनी बात खुल कर कहते हैं. इनका यह अंदाज बहुत ही पसंद आता है.मन को भाता है. विचारों का एक अंधड़ जब आता है तो वह सबको उड़ा कर ले जाता है. किसी से भेदभाव किये बिना. चाहे वो कोई भी तुर्रम खां हो. इनके और भी चिट्ठे हैं अंधड़ पर इनकी पहली पोस्ट 8 अगस्त 2008 की दिखाई देती है जिसमे युद्ध बंदी धन सिंग के परिवार की व्यथा का चित्रण है. इन्होने अपने दो ब्लाग अंधड़ पर ही स्थानांतरित कर दिये हैं. इनकी पहाडी बोली का एक ब्लाग Paahdi stuff ! है |
गोदियाल जी अपनी प्रोफाईल पर कुछ इस तरह से लिखते हैं......... पी.सी. गोदियालमेरे बारे मेंऐसा कुछ भी ख़ास है नहीं बताने को, अपने बारे में ! बस, यों समझ लीजिये कि गुमनामी के अंधेरो में ही आधी से अधिक उम्र गुजार दी !हाँ, इतना जरूर कहूँगा अपने बारे में कि सही को सही और गलत को गलत कह पाने की हिम्मत रखता हूँ, चाहे दुनिया इधर से उधर हो जाए ! My humble request is to kindly ignore the typographical errors. My fondest wish is to inspire someone else to write something even better than I have done. Look forward to reciving your creative suggestions.regards, xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx साभार,..................... गोदियाल
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गोदियाल जी की अंधड़ पर पहली पोस्ट, अवलोकन कीजिएFriday, August 8, 2008
धनसिंह- एक युद्धबंदी !कुछ समय पहले, जब पंजाब के कश्मीर सिंह, जिंदगी की एक लम्बी जंग लड़कर पैंतीस साल बाद पाकिस्तानी जेल से रिहा होकर भारत लौटे, तो अचानक मेरे मस्तिस्क से धूमिल हो चुकी एक वृद्ध की कुछ तस्बीरे, जो मेरे दिमाग में तकरीबन १२-१५ साल पहले घर कर गई थी, मेरे जहन में फिर से हथोडे की तरह प्रहार करने लगी थी।
मारे बहुत से रणबांकुरे थे, जो १९६५ और ७१ की लड़ाई में कहीं गुम हो गए थे और जिन्हें हम आज तक नही ढूंड पाए। एक-दो ही ऐंसे खुश नसीब थे, जो पुनः लौटकर घर आ सके, अन्यथा उन बदनसीबो का कौन , जिन्हें हमारी घटिया दर्जे की राजनीति और नौकरशाही ने उनकी भरी जवानी में ही जिंदा दफ़न कर दिया? और जिनके गरीब परिवारों को मात्र एक तक्मा और चंद रूपये पकडाकर हमेशा के लिए चुप करा दिया। इन स्वार्थी लोगो ने हमारे उन रण वाकुरो के उस त्याग और पराक्रम, जिसमे उन्होंने न सिर्फ़ लाहौर तक को अपने कब्जे में ले लिया था, अपितु पूरब और पश्चिम की दोनों सीमाओं पर कुल मिलाकर उनके एक लाख सैनिक अपने कब्जे मे लिए थे, महज सस्ती लोकप्रियता और दुनिया को अपनी दरियादिली दिखाने के लिए पाकिस्तान को वापस कर दिया, मगर अपने गुमशुदा जवानों ( प्रिजनर ऑफ़ वार) की ठीक से खोज ख़बर करना और समझौते के वक्त अदला बदली का सही मापदंड तय करना भी, मुनासिब न समझा ।ऐंसा ही एक बदनसीब था, धनसिंह । सुदूर अल्मोड़ा की पहाडियों का निवासी । तीन बहनो का इकलोता भाई। गरीब परिवार की मजबूरिया और देशप्रेम की भावना उसे १२वीं पास करने के बाद रानीखेत खींच लायी। और वह सेना में भर्ती हो गया। अभी रंगरूटी पास ही की थी कि देश के पूर्वी और पश्चमी मोर्चे पर युद्ध के बादल छा गए। बाग्लादेश की आग पश्चमी मोर्चे पर भी पहुच गई, उसे जम्मू से लगी सीमा के एक मोर्चे पर भेज दिया गया। एक दिन जब उसे सेना की एक टुकडी के साथ दुश्मन की अग्रिम पोजिशन को पता लगाने भेजा गया तो दोनों पक्षों के बीच घमासान युद्ध हुआ, उसके सभी साथी मारे गए, जिनकी लाशें बाद मे सेना को मिल गई, मगर धन सिंह की न तो लाश मिली और न फिर वह लौटकर आया।उस बूढे व्यक्ति की कहानी मुझे बताई कि कैसे इसका बेटा १९७१ की लड़ाई में गुम् हो गया था। और उसके बाद ....................!वृद्ध के दांत भी नही थे, और एक लडखडाती लय-ताल में वह वृद्ध कुछ इस तरह का पहाडी गीत गा रहा था: "त्वे जागदो रैयु धना, डाक की गाड़ी मा, तू किलाई नि आई धना, डाक की गाड़ी मा................................!" ( धन सिंह, मैं तेरा डाक गाड़ी से आने का इंतज़ार कर रहा था, मगर तू अब तक आया क्यो नही ?) ................ यह सब सुनकर मै भी एक गहरे भाव मे कहीं खो सा गया था, मैं बस एक लम्बी साँस लेकर रह गया। उन बूढी आंखो को आख़िर समझाता भी तो किस तरह कि तू अब अपने धना (धन सिंह ) का इंतज़ार छोड़ दे, तेरा धना, अब शायद कभी लौट्कर नही आएगा।
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अद्यतन पोस्टदास्ताँ-ए-इश्क जब उन्होंने सुनाया,
अंदाज-ए-बयाँ हमें उनका खूब भाया ,
बनावटी मुस्कान चेहरे पे ओढ़कर ,
दर्द, दिल में छुपाना भी पसंद आया !
अश्क टपके बूँद-बूंद जो नयनों से ,
वो दिल-दरिया से निकल के आये थे,
हमें गफलत में रखने को उनका वो,
प्याज छिलते जाना भी पसंद आया !
हमें आशियाने पर अपने बिठा कर,
किचन में तली पकोड़ी जब उन्होंने ,
सिलबट्टे पे पोदीना-चटनी को पीसते,
मधुर गीत गुनगुनाना भी पसंद आया !
प्यार से परोसी जब उन्होंने हमको,
गरमागरम चाय संग चटनी-पकोड़ी,
थाली के ऊपर से मक्खी भगाने को,
उनका वो पल्लू हिलाना भी पसंद आया !
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Sunday, November 22, 2009
सी बूंद तौं गलोड्यों मा !
त्वै मेरी बांद, मी बतौण ही पड्लु कि
आज इथ्गा उदास किलै च तेरु मन,
सी तरपर ओंस तेरी आंखि छ्न ढोल्णी
कि तौ गलोड्यों मुंद बूंद सी, बरखैगी छन ।
मी सी कनी कैकि भी नि छुप्ये सकदीन
तु ढौक जथा भी तौं तै धोति का पल्लन,
सी तरपर ओंस तेरी आंखि छ्न ढोल्णी
कि तौ गलोड्यों मुंद बूंद सी, बरखैगी छन ।
यु हैंस्दु बुरांस भी तन किलै मुरझायुं
घाम छैलेगि हो रौली-बौल्यों कु जन,
सी तरपर ओंस तेरी आंखि छ्न ढोल्णी
कि तौ गलोड्यों मुंद बूंद सी, बरखैगी छन ।
आज मी तै यख बिटी अडेथ्ण का बाद
कब तक रुऔली तु तौं आंखियों तै तन,
सी तरपर ओंस तेरी आंखि छ्न ढोल्णी
कि तौ गलोड्यों मुंद बूंद सी, बरखैगी छन ।
तेरा जाण का बाद, अकेली रालू जब मै
मी तेरी याद का सुपिना आला कन-कन,
यी तरपर ओंस जु मेरी आंखी छन ढोल्णी
दग्ड्या तेरी खुदमा मेरा दिल की बाडुली छन ।
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अब चिट्ठाकार चर्चा को देता हूँ विराम-सभी को ललित शर्मा का राम-राम |
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19 टिप्पणियाँ:
nice
गोदियाल जी का मैं फैन हूँ।
धन्यवाद।
सप्रयत्न बहुत अच्छा है। पीसी एक सुपर्ब लेखक है।
चिट्ठाकारों की चर्चा का यह ढंग भी अच्छा है .. किसी अपरिचित ब्लॉगर से भी परिचय होने की पूरी संभावना बनेगी .. पर आपने अभी तक मेरे परिचित ब्लॉगरों का ही परिचय करवाया है .. लेकिन आपके द्वारा परिचय करवाए जा रहें सभी ब्लॉगर वास्तव में अपने दृष्टिकोण और रचना के लिए चर्चा करने लायक हैं .. इसमें कोई शक नहीं !!
आप तो रोज कर रहे हैं धमाकेदार काम
ललित शर्मा जी को हमारा भी राम-राम
"इनके लेखन में एक आक्रोश झलकता है, जो सीधा सीधा प्रश्न कर पाठकों से एक संवाद स्थापित करता है. ये अपनी बात खुल कर कहते हैं. इनका यह अंदाज बहुत ही पसंद आता है.मन को भाता है. विचारों का एक अंधड़ जब आता है तो वह सबको उड़ा कर ले जाता है. किसी से भेदभाव किये बिना."
सटीक परिचय!
इस चर्चा का आभार ।
अच्छी चर्चा.
गोदियाल जी की जय...उन पर तो ड्यू है बहुत कुछ...अच्छा लगा डिटेल मिल गई. :)
गोदियाल जी पर चर्चा अच्छी लगी , ललित जी आपकी चर्चा का ये तरीका पसंद आया , आभार
गोदियाल जी पर चर्चा अच्छी लगी , प्रयत्न बहुत अच्छा है।
badhiya .bahut badhiya charcha...
achha laga godiyaal ji ke bare me vistar se jaan kar
dhnyavaad !
तो आखिर आपने मुझे भी लपेट ही लिया :) तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया ललित जी ! कभी डिटेल में अपने बारे में भी बताइयेगा !
गोदियाल जी के श्रम को सलाम!
.... प्रभावशाली प्रस्तुति !!!!!
गोदियाल जी से मिलकर .......यूं मिलकर और भी अच्छा लगा । ललित जी तो अब चर्चा में डाक्टरेट कर चुके हैं , हम सब उन्हीं की शागिर्दी में फ़ेलोशिप कर रहे हैं
अजय कुमार झा
चर्चा का ये तरीका पसंद आया ...
ललित जी आपने सटीक और सही परिचय दिया है | गोदियाल जी के लेखनी के हम भी कायल हैं |
ललित जी,
आपका हृदय से आभार..आपने गोदियाल जी से परिचय करवाया....गोदियाल साहब एक बहुआयामी प्रतिभा के मालिक हैं....
और हिंदी ब्लॉग जगत के एक मज़बूत स्तम्भ...
ख़ुशी हुई उनसे मिल कर...
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