रविवार, 24 जनवरी 2010

मिलिए अजय लाहुली से-चिट्ठाकार-चर्चा (ललित शर्मा)

अभी कुछ दिन पहले एक ब्लाग पर मेरी नजर पड़ी उसका नाम मुझे सुना हुआ लगा तो जिज्ञासा वश उस ब्लाग पर गया तो अद्भुत नजारा पाया. वह ब्लाग प्रकृति के चित्रों और नजारों से भरा हुआ था.बड़ा ही आनंद आया जैसे मै स्वयं ही  वहां पहुंच गया हुँ। इस ब्लाग का नाम है लाहुली तथा यह नाम मैने फ़िल्म "माला माल विकली" मे परेश रावल के मुंह से सुना था। मुझे ऐसा लगा कि यह ब्लाग दुसरी दुनिया के वासी का है। जहां से हम परिचित नही है.यह ब्लाग अजय लाहुली का है। ये चिट्ठा जगत मे अक्तुबर 2009 के अंतिम सप्ताह मे आए है। मै ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ “चिट्ठाकार चर्चा” पर और सैर करते है लाहुली जैसे स्वर्ग की और जानते है वहां की संस्कृति एवं त्योहार ।

अजय लाहुली अपनी ब्लागर प्रोफ़ाईल पर निम्न जानकारी देते हैं


अजय लाहुलीlahuli

इनकी प्रथम पोस्ट चित्रों से भरी हुयी है-आप भी देखिए

(रास्ते से बर्फ़ सफ़ाई)

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बर्फ जब पड़ती है तो दूर-दूर तक कुछ ऐसे चमक बिखरती है हर तरफ़ झक सफ़ेद।
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हमाले खेत की मूली-आईए खाईए
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इनकी अद्यतन पोस्ट मे त्योहारों की जानकारी

आप सबको 2010 हालडा,लोसर व खोगल की शुभकामनाएँ 

लोसर, हालडा या खोगल लाहुल में सर्दियों में मनाया जाने वाला वर्ष का पहला पर्व या उत्सव है. इस आयोजन के ajay lahuli 7 बाद सर्दी खत्म होते तक अलग-अलग गाँव में अलग-अलग उत्सवों का दौर शुरू हो जाता है. लाहुल-स्पीति क्षेत्रफल के लिहाज से हिमाचल का सबसे बड़ा जिला है लेकिन आबादी सबसे कम (दो व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर). भाषा व बोलियों की विविधता के साथ सांस्कृतिक विविधता के बीच कुछ आयोजन ऐसे हैं जो पूरे लाहुल का सांझा आयोजन है. हालडा पर्व उन्ही में एक है. बौद्ध व हिन्दू आबादी वाले इस जिले में गाहर, पट्टन (चंग्सा, लोकसा,स्वान्गला/रेऊफा), तिनन, तोद, रंगलो, पतनम (म्याड), पिति (स्पीति), पंगवाली ( तिंदी), चिनाली व लोहार की भाषा-बोलियाँ हैं. तोद, रंगलो, पतनम (म्याड), पिति (स्पीति) की भाषा में समानता है,चंग्सा, लोकसा,स्वान्गला/रेऊफा बोली एक जैसे है, कुछ शब्दों को छोड़ दें तो फर्क सिर्फ लहजे व उच्चारण का है. भागा नदी के किनारे बसने वाली गाहर व तोद एक दुसरे के करीब होते हुए भी भाषा व बोली की दृष्टि से जुड़े नहीं हैं. चंद्रा नदी के किनारे की तिनन की आबादी रंगलो से अलग है. चंद्रा-भागा (चिनाब) के दोनों और पट्टन (चंग्सा, लोकसा,स्वान्गला/रेऊफा) की बोली में बहुत अधिक समानता है. लहजे व उच्चारण से अनुमान लग जाता है कि किस क्षेत्र से सम्बन्धित है

गाहर 

गाहर में हालडा 24 जनवरी को है. हालडा देवदार की लकड़ी को छोटे-छोटे चीर कर लकड़ी का गट्ठर बना कर ajay lahuli 8 तैयार होता है. बौद्ध पंचांग के अनुसार हालडा फाड़ने व तैयार करने के लिए उपयुक्त राशि के जातक का चयन किया जाता है. हालडा तैयार कर घर में पूजा के स्थान पर रखा जाता है. हालडा घर से रात को बाहर निकालने का समय भी पंचांग से ही तय होता है. हालडा फेंकने वाले घर के पुरुष सदस्य पारंपरिक भेष-भूषा में होते हैं तथा सर पर टोपी में गर्मियों में सहज कर रखे फूल पहनते हैं. घर में कई प्रकार के व्यंजन बनते हैं. हालडा निकालने से पूर्व घरों में कुल-देवता की पूजा होती है. भुने हुए जो से बने सत्तू का 'केन' बना कर उसमें घी डाला जाता है. केन व अरग या छंग ( देसी शराब) का कुल देवता को भोग लगाया जाता है. एक कप में केन डाल कर उसमे देवदार की हरी पत्ती लगते हैं. ये हालडा फेंकने वाला सदस्य अपने साथ ले जाता है. हल्डा को देवदार की हरी-सूखी पत्तियों व फूल से सवांरा जाता है. परिवार के सभी सदस्यों के सर पर खुशहाली व समृद्ध के प्रतीक के तौर पर घी का टिका लगाया जाता है. निश्चित अवधि के बाद हालडा को चूहले से जला कर घर से बाहर निकाला जाता है. ग्रामीण कतार में हल्डा को थामते हुए नगाड़े के साथ चलते हैं तथा गाँव के सीमा से दूर निर्धारित स्थल पर पूरे गाँव के हाल्ड़े को एक स्थान पर जलाते हैं.
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अब चिट्ठाकार-चर्चा को देते है विराम-आपको ललित शर्मा का राम-राम

13 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari ने कहा…

चलिये, इसी तरह मुलाकात हुई...जाते हैं उनके ब्लॉग पर. :)

गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

आप वह काम कर रहे हैं जो आज हिन्दी ब्लॉगरी की महती आवश्यकता है। आप के इस तप को नमन।... मूछों में दम है !
मूलियाँ तो वाकई जबरदस्त हैं, एक तो मानव आकार मुद्रा सी लग रही है।

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

आप ने एक अनोखे ब्लागर से मिलवाया। उन के यहाँ बहुत नई जानकारियाँ हैं। आभार!

sanjay vyas ने कहा…

अद्भुत है लाहुल और लाहुली की दुनिया.
शुक्रिया.

Unknown ने कहा…

नये पुराने साथियों से मिलवाने का आपका काम सराहनीय है!

Kulwant Happy ने कहा…

बहुत उम्दा प्रयत्न है।

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत अच्छा लगा इनसे मिलकर, आपका आभरा एक बार फिर से ।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

आप मूलियां कह रहे हैं
मुझे तो सफेद मूंगफलियां दिखलाई दे रही हैं।

लाहुली ने कहा…

धन्यवाद ललित जी, मुझे व मेरी 'दुनिया' को जोड़ने के लिए. आभार प्रकट करता हूँ आप के ब्लॉग से मेरी दुनिया की नई खिड़की खुली है. आप ने मुझे उत्साहित व प्रेरित किया है. आप सभी का आभार. आगे भी इस दुनिया के अलग-अलग रंगों के साथ हाज़िर होता रहूँगा. आभार सहित.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ललित जी!
अजय लाहुली जी से निलवाने के लिए आपका शुक्रिया!
अब इनके ब्लॉग पर भी जाते रहेंगे!

Arvind Mishra ने कहा…

लाहुली -शुक्रिया !

अजेय ने कहा…

shaan daar. ज़्यादा कहूँ तो , आप कहेंगे अपने भाई की तारीफ कर रहा है. ढेर सारी शुभ कामनाएं.

अजय कुमार झा ने कहा…

ललित जी आज लग रहा है कि प्रयास रंग ला रहा है , आपके माध्यम से एक संजीदा ब्लोग्गर के खूबसूरत ब्लोग से परिचय हो गया , मेरे हमनाम एक और अजय जी से मुलाकात अच्छी लगी,आपका बहुत बहुत आभार
अजय कुमार झा